"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

मैने बहुत से इन्सान देखे हैं,

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मैने बहुत से इन्सान देखे हैं,
जिनके बदन पर लिबास नहीं होता।
और बहुत से लिबास देखे हैं,
जिनके अंदर इन्सान नहीं होता ।

कोई हालात नहीं समझता,
कोई जज़्बात नहीं समझता,

ये तो बस अपनी अपनी समझ है,
कोई कोरा कागज़ भी पढ़ लेता है,
तो कोई पूरी किताब नहीं समझता...!!!

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

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