"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

शि‍क्षा का अधि‍कार है जरूरी

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प्रत्येक बच्चे को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्राप्त होना स्वतंत्र भारत के इतिहास की युगांतकारी घटना साबित हो सकती है। चीन के बाद दूसरी सबसे तेज आर्थिक विकास दर दर्ज करने तथा विश्व स्तर पर अन्य अनेक उपलब्धियों के बावजूद अशिक्षितों की विशाल संख्या अब भी भारत के लिए लज्जा का विषय है। यदि अनिवार्य शिक्षा के कानून पर ठीक तरह से अमल हो सका, तो यह धब्बा भी धुल जाएगा तथा देश विकास के पथ पर और तेजी से कुलाँचे भर पाएगा। 

सोलह साल पहले सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में देश के सभी बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य मूलभूत शिक्षा प्रदान किए जाने का सरकार को सुझाव दिया था। यह एक ऐतिहासिक सुझाव था मगर, इस पर अमल असंभव लग रहा था। 

दुनिया के तमाम ऐसे देश हैं जहाँ शिक्षा मूलभूत अधिकार है और हमारे भी संवैधानिक हकों में यह शामिल थी, लेकिन व्यवहार में सबके लिए मुफ्त और अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा का कोई ऐसा कानून नहीं था ताकि हर हिन्दुस्तानी शिक्षित होने का हक पा सके। बहरहाल, 2003 में इस संबंध में गंभीरता से काम शुरू हुआ और 2005 में पहली बार 'राइट टू फ्री एंड कंपलसरी एजुकेशन बिल' का पहला ड्रॉफ्ट तैयार हुआ। इसके बाद देर भले हुई हो पर सैद्धांतिक रूप से किसी ने इसका विरोध नहीं किया। 

हर गुजरते दिन के साथ भारत इस ऐतिहासिक उपलब्धि के करीब पहुँचता जा रहा था और जब 2008 में निर्णायक रूप से यह बिल संसद में पास हुआ तो सबको यह उम्मीद बँध गई थी कि अब बहुत ही जल्द भारत उन गिने-चुने संभ्रांत देशों के क्लब में शामिल होगा जिनके यहाँ मूलभूत शिक्षा मुफ्त और अनिवार्य है। 

बस, इस बात का इंतजार था कि देखें यह श्रेय किसके खाते में जाता है। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को इस ऐतिहासिक उपलब्धि का श्रेय मिलता है जिसने इस बिल पर काम शुरू किया था या किस्मत की धनी मनमोहन सरकार को। फैसला 15वीं लोकसभा के चुनावों ने कर दिया। चुनाव में यूपीए अप्रत्याशित ढंग से जीतकर आया और आखिरकार मनमोहन सरकार को एक ऐसे ऐतिहासिक कदम का श्रेय मिला, जो 62 सालों की आजादी में शायद सबसे महत्वपूर्ण कदमों में से एक है। 

20 जुलाई 2009 को राज्यसभा ने 'राइट टू फ्री एंड कंपलसरी एजुकेशन बिल' को पास कर दिया। इसके बाद लोकसभा की बारी थी। लोकसभा ने भी 4 अगस्त 2009 को इसके पक्ष में अपना मत दिया। अब देश के हर बच्चे का यह हक होगा कि वह 6 से 14 साल की उम्र तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा हासिल करे। इस ऐतिहासिक फैसले को अमलीजामा पहनाने के लिए हर साल 12000 करोड़ रु. का नया बोझ पड़ेगा और लगभग 1.5 खरब रुपए इसकी अधोसंरचना के विकास में खर्च होंगे। इतने भारी-भरकम खर्च के बाद भी इससे जो लाभ हासिल होगा वह कहीं ज्यादा बड़ा होगा।

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