"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

चल रहा था रास्ते पर अकेला

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चल रहा था रास्ते पर अकेला 
अचानक  ठोकर लगी, और मैं गिर गया,
मैं खुश हुआ.... मैंने गिरना सीख  लिया

यकीं ना था ऐसा होगा,
हुआ फिर तो मैंने सम्भालना सीख लिया,

वक्त के हालातों के साथ खुद को बदलना सीख लिया,
फिर चल दिया आगे जिसपर देखूं तो कोई मंजिल नहीं दिखती,
दुनिया दिखती है
दुनिया के मतलबी लोगों की भीड़ दिखती है,

मुझे मतलबियों से मतलब क्या?
लेकिन उन से भी मिलना सीख लिया,
वक्त के तराजू में आचे और बुरे को पहचानना सीख गया। 

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

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