मेरे मतलब की एक बात,
बैठा हूँ, लिए कुछ पुरानी याद,
...
गम में जीते जीते
बातें भूल जाता हूँ,
क्या है वो बात...?
याद आये तो बताता हूँ,
...
हज़ार मौके दीजिये,
ऐसा तो नहीं कहता,
असलियत में याद रहता तो मैं...
जरूर कहता,
मगर कहने में ... बताने में ...
इतना वक़्त नजाने क्यूँ लग रहा है,
कुछ तो बात ऐसी है ...
जिसे कहने में भी दर लग रहा है,
कहते हैं सब... खुदा देख रहा है,
मेरे मालिक...तू देख यहाँ... इंसान... कैसे कैसे खेल रहा है
ज़िन्दगी तो तेरी दी हुई है लेखिन वो तुझे ही भूल रहा है।
****पीताम्बर शम्भू****