"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

मैं मातृभाषा में लिखता हूँ....

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मैं अपने मन की कहता हूँ,
मैं अपने मन की ही सुनता हूँ,
जो दिल में आया कह देता हूँ,
जो अच्छा ना लगे नहीं सुनता हूँ,

मैं मातृभाषा में लिखता हूँ,
मैं मातृभाषा में बोलता हूँ,
नहीं किसी का है राज मुझपर... मैं मातृभाषा प्रेमी हूँ,

मैं वह हर भाषा प्रेमी हूँ.... जिसमें ममता की छाँव मिले,
हर एक... उस छाँव में.... भारत देश का नाम मिले,
गर्व होता है मुझको... जब जब मैं यह सोचता हूँ,
मैं मातृभाषा में बोलता हूँ, मैं मातृभाषा में लिखता हूँ।।

अजीब शौक है मेरे लिखने का.... मैं हिन्दी में ही लिखता हूँ
मैं मातृभाषा में लिखता हूँ... मैं मातृभाषा में लिखता हूँ ।।

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

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