एक नगर मे रहने वाले एक पंडित जी की ख्याति दूर दूर तक थी पास ही के गाँव मे स्थित मंदिर के पुजारी का आकस्मिक निधन होने की वजह से उन्हें वहाँ का पुजारी नियुक्त किया गया था...
एक बार वह अपने गंतव्य की और जानेके लिए बस मे चढ़े उन्होंने कंडक्टर को किराए के रुपये दिए और सीट पर जाकर बैठ गए
कंडक्टर ने जब किराया काटकर रुपये वापस दिए तो पंडित जी ने पाया की कंडक्टर ने दस रुपये ज्यादा उन्हें दे दिए है।
पंडित जी ने सोचा कि थोड़ी देर बाद कंडक्टर को रुपये वापस कर दूँगा
कुछ देर बाद मन मे विचार आया की बेवजह दस रुपये जैसी मामूली रकम को लेकर परेशान हो रहे है आखिर ये बस कंपनी वाले भी तो लाखों कमाते है बेहतर है इन रूपयो को भगवान की भेंट समझकर अपने पास ही रख लिया जाए वह इनका सदुपयोग ही करेंगे।
मन मे चल रहे विचार के बीच उनका गंतव्य स्थल आ गया बस मे उतरते ही उनके कदम अचानक ठिठके उन्होंने जेब मे हाथ डाला और दस का नोट निकाल कर कंडक्टर को देते हुए कहा भाई तुमने मुझे किराए के रुपये काटने के बाद भी दस रुपये ज्यादा दे दिए थे।
कंडक्टर मुस्कराते हुए बोला क्या आप ही गाँव के मंदिर के नए पुजारी हो?
पंडित जी को हामी भरने पर कंडक्टर बोला मेरे मन मे कई दिनों से आपके प्रवचन सुनने की इच्छा है आपको बस मे देखा aतो ख्याल आया कि चलो देखते है कि मैं ज्यादा पैसे लौटाऊँ तो आप क्या करते हो, अब मुझे पता चल गया की आपके प्रवचन जैसा ही आपका आचरण है जिससे सभी को सिख लेनी चाहिए।
ये बोलकर कंडक्टर ने गाड़ी आगे बड़ा दी
पंडित जी बस से उतरकर पसीना-पसीना थे उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर भगवान से कहा है प्रभु तेरा लाख-लाख शुक्र है जो तूने मुझे बचा लिया मैने तो दस रुपये के लालच मे तेरी शिक्षाओ की बोली लगा दी थी पर तूने सही समय पर मुझे थाम लिया....!
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