आज का शिक्षित युवा बेरोजगारी और बेकारी की मार झेल रहा है। रोजगार के लिए दर दर की ठोकरें खाते हुए इधर-उधर भटक रहा है। हाथ में कोई हुनर भी नहीं है कि स्वयं का कोई हुनरमंद व्यवसाय शुरू कर सके। घर का वातावरण और परिस्थितियां ऐसी नहीं है कि पढ़ाई के लिए पूर्णतः अनूकूल वातावरण मिल सके। अच्छी और उच्च पढ़ाई के लिए अच्छी किताबों और ट्यूशन पर पैसे खर्च कर सके। अतः एक औसत दर्जे की पढ़ाई कर रह जाता है, नतीजा ये कि साधारण शिक्षा के बल पर उच्च पदों और उच्च नौकरी पाने की लालसा भी नहीं रख सकता है। सिर्फ़ हिसाब-किताब वाले बाबुगिरी के कार्य और लिखाई-पढ़ाई के कार्य के अलावा कोई अन्य कार्य करने में खुद को समर्थ नहीं पाता है क्योंकि अभी तक जो शिक्षा पाई है, उससे सिर्फ़ यही कर सकता है।
इस शिक्षा को ग्रहण करते हुए अपने पारंपारिक और पुरखों के चले आ रहे हुनरमंद व्यवसाय को भी छोड़ड़ और भूल चुका है। शिक्षा ग्रहण करने के बाद अपने पारंपारिक व्यवसाय को करने की इच्छा भी शेष नहीं रह जाती है। आज के सिनेमा और टीवी के कार्यक्रमों ने भी पतन की ओर ही पहुंचाया है। आजकल ज्यादातर समय इन्ही में बिताता है। उनसे प्रभावित होकर हमेशा अच्छी सुख-सुविधाओं को पाने और सुंदर जीवनसाथी को पाने के ख्वाब संजोते रहता है। भले ही हुनर, अच्छा शारीरिक सौष्ठव और सुन्दरता न हो, फिर भी ये सब जल्द से जल्द कम परिश्रम और आसान रास्ते से पाना चाहता है।
दिनोंदिन भौतिकवादी और पाश्चात्य संस्कृति के नजदीक पहुंच रहा है। बेरोजगार और बेकार रहने के कारण घर वाले भी परेशान रहने लगे हैं और घर में व समाज में निकम्मा और नाकारा समझा जाकर हेय दृष्टि से देखा जाना लगा है। धीरे-धीरे निराशा घेरने लगती है, जिससे समाज और दुनिया से मोहभंग होने लगा है। कम से कम भावी युवाओं, जो देश का भविष्य हैं, के बारे में सोचते हुए कब इन प्रतिकूल परिस्थितियों को आवश्यकता अनुरूप अनुकूल परिस्थितियों में बदला जाएगा।
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