"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

500 गुब्बारे (कहानी)

{[['']]}

एक बार 500 लोगों के लिये एक सेमिनार कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें 500 गुब्बारों को एक कमरे में रखा गया। कार्यक्रम की शुरूआत की गयी तथा निर्देश दिया गया कि सभी अपने लिये एक एक करके गुब्बारे लें और उसपर अपना नाम लिखकर उसे पुन: कमरे में रख दें। लोगों ने ऐसा ही किया।

कुछ समय पश्चात् जब सब नाम लिख चुके थे तब फिर निर्देश दिया गया कि हम आपको 5 मिनट का समय देते हैं, आप अपने नाम वाला गुब्बारा लेकर अपना स्थान जल्दी से ग्रहण कर लें। लेकिन  500 लोगों की इतनी भीड में अपने नाम के गुब्बारे को ढूंढ पाना सरल काम थोडी था।समय समाप्ति की घोषणा हुई और कोई भी नहीं ढूंढ़ पाया।

अब आयोजन कर्ता ने कहा कि, " अब आप लोग फिर जाईये और यदि आप लोगों को किसी दूसरे के नाम का गुब्बारा मिले तो वह उसे आवाज लगा कर लौटा दें और अपना ढूंढते रहे। ऐसा करके देखिये, देखते हैं कितना समय लगता है?"
अब सभी लोग फिर जुट गये और यकीन कीजिये पांच मिनट से भी काफी पहले सभी लोग गुब्बारा ढूंढ चुके थे।

आयोजनकर्ता कहता है कि,"यही सब कुछ तो हमारे जीवन में चल रहा है, हम लोग खुशी ढूंढने एक साथ तो निकल पड़ते हैं लेकिन यदि किसी दूसरे की खुशी हमारे पास होती है तो हम उसे लौटाते नही बल्कि जाने देते हैं। अगर सभी आपस में खुशी बांटने लग जायें तो देखना सभी लोग खुश रहेंगे और सुखी रहेंगे। यही तो मानव धर्म है, यही इन्सानियत है।"

धन्यवाद

About Admin:

मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

Post a Comment