आज 14 फरवरी है... हम सभी जानते हैं कि विश्वभर में इस दिन को वेलंटाइन डे के रूप में मनाते हैं। लेकिन कभी ये सोचा है कि इसको क्यों मनाया जाता है और मनाने की जरूरत क्यों हैं..?? तो इस बात का सीधे तौर पर उत्तर यह है कि हम सभी पाश्चात्य संस्कृति के गुलाम हैं, जो कुछ पश्चिम में बीता या गुजरा वो पूर्व में भी होगा और भारत में भी होगा। इसको तीव्र गति से फैलाने का श्रेय वैश्वीकरण को जाता है जिसने दुनिया को एक करने की कोशिश की। इस एक करने की कोशिश में कई गुण, अवगुण, रीतियां व कुरीतियां एक देश से दूसरे देश में गई जिसका सर्वाधिक असर हमारे भारत देश की संस्कृति पर पड़ा।
मेरे यहाँ इस संदर्भ में लेख लिखने का कारण यह है कि हमें सभी को समान सम्मान देना चाहिये चाहे वह किसी भी दिन के लिये हो। अधिकतर देखा गया है कि हम पश्चिम के दिवसों को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं, जो कि किसी काम के नहीं। मगर हमारे भारत देश की संस्कृति में कई दिवस ऐसे हैं जिन्हें बड़ी धूमधाम से मनाया जाना चाहिये तथा मनाना जरूरी भी है। पर हम उन्हें ठीक से मना नहीं पाते। लेकिन वेलेंटाइन डे के आते ही हमारे यहां मनाने की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। हमारी वही तैयारियां २३ मार्च, २३ जनवरी, १४ अपैल जैसे अनेक दिनों पर कहां चली जातीं हैं जिनकी वजह से हमारा भारत देश आज संभला हुआ है, उन लोगों, महापुरूषों, क्रांतिकारियों से संबंधित दिवसों को तो हम याद नहीं रख पाये आज तक। लेकिन पाश्चात्य संस्कृति से जुड़े दिवस हमें याद रहतें हैं। इस बात का भी जवाब यह हो सकता है कि जबतक कोई दिवस मनाया ना जाये तो याद कैसे रहेगा?? हम पश्चिम से जुड़ने की कोशिश में लगे रहते हैं। जबकि मेरा मानना है सबसे पहले हमें अपने भारत देश से जुड़ना चाहिये भारत को सफल बनाना चाहिये।
अब रही बात १४ फरवरी के इतिहास की, तो लोग इस इतिहास से भी अनजान हैं। बस भेड़-चाल चल रहे हैं एक दूसरे के पीछे। आज वैलेंटाइन डे का मतलब सिर्फ "प्रेमी दिवस" व "प्रेम करने वालों का दिन" बनकर रह गया। जबकि इस दिन की भी असलियत कुछ और ही है। इस दिन की शुरूआत तीसरी शताब्दी के अंतिम वर्षों से माना जाता है। उन दिनों रोम का राजा/सम्राट क्लाउडियस था, जिसने भारी तादात में अपनी सेना की वृद्धि की तथा हर एक से शादी न करने को भी कहा गया। उन दिनों शादी कर लेना एक भद्दा सा मजाक समझा जाता था। वहां संबंध में रहने की प्रथा थी, कभी किसी के साथ... कभी किसी के साथ। स्वयं प्लेटो, अरस्तु, डेकार्ते आदि यूरोपियों ने अपनी पुस्तकों में कबूला है कि उनके कई स्त्रियों के साथ संबंध थे। रूसो ने भी अपनी पुस्तक मे तो यहां तक कहा है कि एक स्त्री के साथ जीवनभर रहना असंभव है। परन्तु इन्हीं यूरोपीय लोगों के बीच एक "सेंट वैलेंटाइन" भी थे, जिन्हे ये सब कुछ बुरा लगता था। वे प्रेम आधारित जीवन को समझते थे तथा प्रेम होने के पश्चात प्रेमी युगल की शादियां कराते थे, साथ ही उन्हें जीवनभर साथ रहने की प्रेरणा भी देते थे। क्योंकि बार बार संबंध बदलने से कई घातक महामारियां हो सकती थीं। इस बात का पता क्लाउडियस को लगा कि यह एक कानून विरोधी प्रवृत्ति वैलेंटाइन फैला रहे हैं तो उसने वैलेंटाइन को जेल में डाल दिया और कछ समय बाद १४ फरवरी २७९ को वेलेंटाइन्स का सिर कटवा दिया। बस उसी दिन से हर १४ फरवरी को यूरोप में सेंट वैलेंटाइन के विचारों को अपनाया जाने लगा और वैलेंटाइन डे अस्तित्व में आया।
लेकिन आज अभी भी उनके विचारों का आभाव है। उन्होंने "लिव इन रिलेशंनशिप" जैसी प्रथाओं के विरोध में ये सभी किया, पर आज उन्ही की कुरबानी वाले दिन पर यही फिर से शुरू होने लगा है। मतलब ये है कि लोग हर विषय को कुछ गलत ही समझने में ज्यादा कामयाब होते हैं। भारत में भी यही हाल है, लोग सही रास्ते से स्वत: ही भटक जाते हैं।
अंतत: मैं कहना चाहता हूँ कि बाकि दिवसों को ज्यादा तवज्जो देने से पहले भारतीय दिवसों को ध्यान में इस प्रकार रखो कि उन्हें आप क्यों नहीं मना पाता। यदि मनाने हैं तो सब मनाओ।
भारतीय दिवस इतने बुरे हैं क्या जो हम अपने भूले बैठे हैं..?? जरा सोचिये... वास्तविकता है क्या आखिर..???
अंतत: मैं कहना चाहता हूँ कि बाकि दिवसों को ज्यादा तवज्जो देने से पहले भारतीय दिवसों को ध्यान में इस प्रकार रखो कि उन्हें आप क्यों नहीं मना पाता। यदि मनाने हैं तो सब मनाओ।
भारतीय दिवस इतने बुरे हैं क्या जो हम अपने भूले बैठे हैं..?? जरा सोचिये... वास्तविकता है क्या आखिर..???
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