"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

18वां ऊँट (कहानी)

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किसी दूर रेगिस्तानी क्षेत्र में एक अमीर आदमी 17 ऊँट अपनी ज्यायदाद के तौर पर अपने आश्रितों (बेटा, बेटी और बीवी) को छोड़कर मर जाता है। उसके मरने के बाद उसका वसीयतनामा मिला। 

उस आदमी की वसीयत पढ़ी जाती है। सबसे पहले बेटे को ऊँटों की संख्या का 1/2 हिस्सा मिलना है, फिर बेटी को 1/3 हिस्सा और विध्वा पत्नी को 1/9 हिस्सा। अब बात इस बात पर आकर अटक जाती है कि 17 ऊंटों का हिस्सा 1/2,1/3 और 1/9 कैसे किया जा सकता है। तीनों में पहले से ही अनबन रहती थी, और अब रोजाना लड़ाई झगडे होते चले जा रहे थे। वैसे भी वसीयत के अनुसार बँटवारा करना तो मुमकिन नहीं हो पा रहा था। आखिर में बेटे ने अपने गाँव के "सबसे बुद्धिमान व्यक्ति-आदिल मियां " को इस समस्या को सुलझाने के लिए आग्रह किया। 

 आदिल मियां बड़े ध्यान से वसीयत को पढ़ने लगा, फिर उसने बड़े बेटे से उसका एक ऊँट उसके घर से ले आने को कहा। अब आदिल का एक ऊँट भी 17 ऊंटों में मिला दिया गया, कुल ऊँट हो गए 18... । इतना होने के बाद आदिल बोला :- "हाँ अब ठीक है, अब वसीयत को दोबारा पढ़ते हैं ....!!"
.... बेटे को मिलने चाहिए 1/2, तो उसको मिलेंगे = 9 ऊँट 
.... बेटी को मिलेंगे 1/3 = 6 ऊँट 
.... और पत्नी को मिलेंगे 1/9 = 2 ऊँट 
बाँटे गए ऊँट का कुल योग हुआ = 17 

इतना हिसाब लगते ही आदिल ने अपने बुद्धिमान होने का प्रमाण दिया और अपना अतिरिक्त जोड़ा गया 18वां ऊँट लेकर आगे चलता बना। 

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