"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

राजस्थान में यह कैसी शिक्षा ?

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जैसे ही राजस्थान सरकार ने आठवीं कक्षा के सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से जवाहरलाल नेहरू को हटाया, तुरंत ही सभी के सामने यह बात आई कि आखिर आप कैसी और कौनसी शिक्षा देना चाहते हैं ? इस पाठ्यक्रम में यह तक उल्लेख नहीं किया गया कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री कौन थे और उनकी उपलब्धियाँ क्या थी, उनकी नीतियों और कार्यों का भारत के दृष्टिकोण से क्या योगदान रहा। यूँ तो पाठ्यक्रम स्वतंत्रता के बाद भारत का है लेकिन लाल बहादुर शास्त्री के बारे में भी उल्लेख को छुपा दिया गया है। पुस्तक से ये जानकारी भी हटा दी गयी है कि महात्मा गांधी की हत्या नाथूराम गोडसे ने की थी। अब राष्ट्रनिर्माताओं और ऐतिहासिक उल्लेख को स्कूली किताबों से हटाना बेहद दुर्भागयपूर्ण तो है ही लेकिन ये एक इतिहास और शिक्षा का क्रूर मजाक जैसा दिखाई देता है। हाँ, पुस्तक में यह जरूर जिक्र किया कि पहला संविधान दिवस 26 नवम्बर 2015 को मनाया गया, लेकिन इस दिन को पहले क्या कहा जाता था यह बात जरूरी नहीं समझी गई। नेहरू के योजना आयोग का उल्लेख न होकर नीति आयोग को खास जगह दी गई। भीमराव अम्बेडकर से संबंधित मुख्य बातों का भी कोई संकेत नहीं दिया गया। आखिर राजस्थान सरकार किस तरह की शिक्षा चाहती है। ऐसा तो कुछ समय पहले पाकिस्तान में नज़र आया था कि उन्होंने भारत से सम्बंधित इतिहास को तोड़ मरोड़ के पेश करके अपने पाठ्यक्रम को तैयार किया। फिर खूब आंदोलन और आलोचनाओं के चलते उन्हें भी बदलाव लाना पड़ा। लेकिन भारत में ऐसा होने को हलके में न लेकर शिक्षा को ठीक करने के प्रयास की जरुरत है।
हम सब जानते हैं कि "अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है।"

हाँ, चलो मान लेते हैं कुछ कमियां नेहरू में रहीं होंगी, कुछ कमियां इतिहास के दर्शन में रही होंगी, आपको उनकी विचारधारा से मतभेद हो सकता है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप उन्हें बाजू में रख कर इतिहास खोजने निकल पड़ोगे, पढ़ना-पढ़ाना तो वो भी होगा जो घटित हुआ है। आप उन विषयों पर बहस कर सकते हो, आलोचना कर सकते हो। 

लेकिन यह तो राजस्थान सरकार कि अदूरदर्शी रवैये का परिचायक मालूम पड़ता है। क्योंकि शिक्षा का आधार तर्कसंगत होना चाहिए, और जल्द ही इस रवैये में बिना देरी किये सुधार करना चाहिए। 

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