"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

हवा, सम-विषम, भीड़ और दिल्ली

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चलो 30 अप्रैल भी चली गई। लेकिन जो उत्साह सम-विषम के पहले चरण में देखने को मिला, ऐसा इस बार लगा नहीं। पर केजरीवाल जी ने दिल्ली की जनता को सहयोग के लिए धन्यवाद किया। लेकिन फिर भी लोगों के सहयोग के अतिरिक्त विरोध प्रथम चरण से ज्यादा नजर आया, और ऊपर से वैसे ही दिल्ली में पारा 45,46 डिग्री सेलसियस हो रहा है, दफ्तर, स्कूल खुले हुए हैं।

पर इन सब के बीच बात अभी भी वही है कि दिल्ली में हवा(वायु) को ठीक करने के लिये कुछ और मजबूत दांव अपनाने की जरूरत है। सम-विषम से कुछ बदलाव तो मिला नहीं। हाँ एक बात तो है, कम से कम ज्यादा जाम और भीड़भाड़ से थोड़ी बहुत राहत जरूर मिली, पर ये भी कहीं-कहीं। कारपूलिंग पर खासा जोर दिया, पर इसी बीच ओला और ऊबर कैब वाले भी अपने पैसें को चालाकी से बढ़ाने पर लगे हुए थे। फिर केजरीवाल साहब को उन्हें भी ठीक करना पड़ा।

लेकिन फिर भी जितनी मेहनत आम आदमी पार्टी ने सम-विषम के दूसरे चरण को सफल बनाने में लगाई, उतने संतोषजनक परिणाम दिखाई नहीं दिये।

कुछ सालों पहले जब कांग्रेस की सरकार थी, कॉमनवैल्थ गेम्स के बाद से डीटीसी की सेवाओं का विस्तार किया गया, एसी वाले लोगों को लुभाने के लिये लाल रंग की डीटीसी चलाई गई थी ताकि कार से आने वालों को उसमें ठंडी हवा का आनंद दिलाया जा सके। लेकिन आजकल इन बसों में सफर करना कोई "किला जीत" लेने जितना बड़ा काम लगने लगा है। क्योंकि धीरे धीरे, भीड़ में इजाफा हुआ है, लोगों का पलायन दिल्ली की ओर आज भी होता चला जा रहा है। जिससे दिल्ली में भीड़ का आलम ये है कि आज दिल्ली सबसे अधिक जनसंख्या वाले शहरों में प्रथम नम्बर पर बैठी है। सबको पढ़ाई करने दिल्ली आना है। यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश और आसपास के लोगों सहित थोड़ा दूर वाले भी काम की तलाश में दिल्ली आ निकलते हैं। आज भीड़ तो भीड़ दिल्ली का वातावरण भी डममगाने लगा है।

चलिये वापस सम-विषम पर आते हैं। दरअसल सम-विषम की जरूरत सिर्फ पर्यावरणीय तौर पर ही नहीं समझी गई बल्कि खासतौर पर ये उन लोगों को ठीक करने के लिये भी है जो महज शान के लिये अकेले वाहन मे सफर करने निकल पड़ते हैं। ऐसे लोगों को समझना चाहिये तथा उन्हें सही तरीके से जागरूक किया जाना चाहिये। 

दिल्ली में एक और दांव पेंच किया गया है, जिसमें दिल्ली की सभी डीजल से चलने वाली टैक्सियों पर रोक लगाई है। अब दिल्ली की टैक्सी सिर्फ सीएनजी से ही चलेगी लेकिन बाहर से दिल्ली आने वाले टैक्सी अभी इस फरमान से बाहर ही हैं। पर इस पर विरोध प्रदर्शन जारी है, आखिर टैक्सी चालक की जीविका का सवाल है। लेकिन सिर्फ सीएनजी चला देने से बेहतर नतीजे निकल पायें, थोडा अटपटा सा लगता है। जबकि मुझे लगता है, पर्यावरण की जिम्मेदारी ना दिल्ली सरकार की है, ना भाजपा की, और ना किसी और सरकार की। बल्कि यह सबकी एक नैतिक जिम्मेदारी है, हमारी, आपकी, हम सबकी। थोड़ा अपने-अपने स्तर पर सोचने की जरूरत है, कि हम किस तरह पर्यावरण को दुरूस्त करने में सहायता कर सकते हैं.!! गौर कीजिये, और स्वयं से शुरूआत करने का प्रयास कीजिये।

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

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