"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

बेरोज़गारी और सरकार का रवैया

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सभी लोग जानते हैं भारत में नौकरी पा लेना एक किला जीतने जैसा काम समझा जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जितने लोग हैं उतनी नौकरियां हैं नहीं, और जितनी नौकरियां निकलती हैं उतने से कुछ ख़ास होने वाला नहीं है। आज हो ऐसा चला है कि बेरोजगारी खूब जोर पकड़ रही है। हमारे भारत देश में यहाँ हर तीसरा शख्स योग्यता लिए बैठा है, उसको तलाश है तो नौकरी की। और उस नौकरी की तलाश करते करते वह बेरोजगार इधर से उधर घूमता है, हार कर फिर अपना काम-धंधा शुरू करता है। क्योकि अब जो नौकरिया निकलेंगी भी तो उसमें उसको लेंगे नहीं क्योकि शायद उसकी उम्र हो चली होगी। 

ख़ास बेरोजगारी के पीछे आखिर कुछ दोष प्रशासन के तौर तरीकों का भी रहा और सरकार के रवैये का भी। जिसमें बेचारा आज का युवा वर्ग पिसता नज़र आता है।

यह ख़बर सभी को याद होगी जब कुछ सौ सफ़ाई कर्मचारियों के लिए उत्तर प्रदेश में लाखों लोगों ने आवेदन किया था। यहाँ एक दिलचस्प बात तो ये देखने को मिली कि सफ़ाई कर्मचारी के लिए ना केवल ब्राह्मण सहित ऊँची जाति के लोग थे बल्कि पीएचडी और बडे डिग्री होल्डर भी शामिल थे। सफाई कर्मचारी के लिये सभी वर्गों द्वारा आवेदन करना हमारे भारत के लिये ये एक खुशनुमा समता का पल हो सकता है। लेकिन इसी बीच ये कुछ सौ वेकैंसी पर लाखों लोगों की भीड़ के आवेदन एक भीषण बढ़ती हुई बेरोज़गारी की तरफ भी हमारा ध्यान खींच लेने को और सरकार के दौगुले चरित्र को पुरजोर तरीके से आभासित करने को काफ़ी है। हमारा आधुनिक ट्रेड यूनियन क़ानून एक तरफ़ कुछ चंद रोजगार प्राप्त लोगों की जरूरत से ज्यादा चांदी करता है पर करोड़ों बेरोजगारों को ना जाने किस भरोसे बैठाकर रखता है। सरकारी दामाद बने कुछ बाबूजी कामचोरी के कल्चर को अंजाम देते रहते हैं। चाहे कितना भी काम बाधित हो, चाहे कितना भी काम धीरे हो, चाहे कितने भी पद खाली पडे हों बस तय करे बैठे हैं कि पदों को भरना ही नहीं है। शायद ये कुछ चंद सरकारी अधिकारी लोग समझे बैठे हैं कि अब नई भरती करनी ही नहीं सा कम से कम ही करनी है। क्योंकि इनका अपना काम तो चल ही रहा है दूसरों से और देश से क्या मतलब? अगर एक बार, बैठ कर अपनी सोच को विस्तृत करके ये लोग ध्यान दें तो केवल भारत सरकार में 7.5 लाख से भी ज़्यादा नौकरियाँ ख़ाली पड़ी हैं। और अलग राज्य सरकारों में 50 लाख से भी ज़्यादा तुरंत नौकरियाँ ख़ाली पड़ी हैं। कॉन्ट्रेक्ट ही सही पर नयी भर्ती तो जरूर आनी चाहिये। कम से कम इससे कुछ हद तक बेरोजगारी व काम चोरी से तो राहत मिल पायेगी। बिहार में दो लाग कॉन्ट्रेक्ट पर टीचर्स की नौकरी उपलब्ध करायी गई। अब देश में 2 लाख स्कूल तो ऐसे हैं जहाँ केवल एक ही टीचर है। अब यदि ऐसे स्कूलों में कम से कम चार टीचर भी बहाल किये गये को 10 लाख टीचरों की तुरंत बहाली हो जायेगी। सच में श्रम और रोजगार सही दिशा में ना होने से बेरोजगारी देश में बेहद गंभीर समस्या बनी हुई है। और ये समस्या और अधिक गंभीर होती चली जायेगी यदि इसपर कोई नीति या योजना न बनाई गई।

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