काले धन और भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए मोदीजी ने अचानक से पांच सौ और एक हज़ार के रूपये के नोटों को बंद कर दिए जाने का फैसला सुना दिया। माना जा रहा है कि इस कदम से कर चोरी के मामले उजागर हो सकेंगे, भ्रष्टाचार पर लगाम लग सकेगी, काले धन को रद्द किया जा सकेगा, हवाला के जरिये नकदी का प्रवाह रुक जायेगा साथ ही आतंकवाद की फंडिंग भी रुक सकेगी।
लेकिन इसी बीच अचानक फैसले से आम, गरीब, ईमानदार और सामान्य लोगों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। शुरुआत में नकदी निकलने की सीमा कुछ कम है जबकि कुछ दिन बाद पैसा निकलने की सीमा को बढाया जायेगा। फिलहाल तो लोगों की भीड़ अपना पुराना पैसा जमा करने की या पैसा बदलवाने की ही लगती हुई ही नज़र आ रही है, जिसमे क़तार इतनी लम्बी है कि कुछ लोगों को भीड़ देखते हुए ही वापस लौट जाने को मजबूर होते हुए भी देखा जा सकता है। फिर भी प्रधानमंत्री के इस फैसले के साथ लोगों को जुड़ते हुए देखा जा सकता है। हालांकि ये पहला मौका नहीं है जब बड़े नोटों को चलन से बाहर किया गया हो। लेकिन इसबार अचानक सब होने से बढती जनसंख्या और बढती जरूरतों के सामने ये सब अफरा-तफरी का माहौल ही दिखाई दे रहा है। फिर भी बीजेपी ये कहने से नहीं चूंक रही कि ये फैसला लेने के लिए वे मजबूर भी इसलिए थे क्योंकि लम्बे समय से स्वैच्छिक कर घोषित करने की अपील के बावजूद लोग अपना सकारात्मक रुख नहीं दिखा रहे थे। इसलिए चोरी और बेनामी संपत्ति पर अंकुश लगाने के मकसद से ऐसा किया जाना भी जरुरी हो गया था।
लेकिन कुछ लाख/करोड़ लोगों को पकड़ने के लिए पूरे देश की जनता को क़तार में ला के खड़ा कर दिया गया। जिसमें सबसे बड़ी कठिनाई हमारे देश के किसानों, मजदूरों और दूर गाँव की गरीब जनता को होने वाली ही दिखती है। उनके सामने निश्चित ही संकट की घडी है।
लेकिन कुछ लाख/करोड़ लोगों को पकड़ने के लिए पूरे देश की जनता को क़तार में ला के खड़ा कर दिया गया। जिसमें सबसे बड़ी कठिनाई हमारे देश के किसानों, मजदूरों और दूर गाँव की गरीब जनता को होने वाली ही दिखती है। उनके सामने निश्चित ही संकट की घडी है।
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