"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

घुटता है दम दम.. घुटता है :(

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दिल्ली इन दिनों बड़ी खतरनाक तरह से हुई प्रदूषित हुई हवा की मार झेल रहा है। याद है मुझे जब 2016 में दिल्ली में ऑड-ईवन को कुछ समय के लिये ट्रायल के तौर पर लागू किया था.. तब भी शायद pm2.5 270-300 के आस पास रहा होगा। लेकिन दीपावली के बाद से जो प्रदूषण बढ़ा वह अब थमने का नाम नहीं ले रहा। साथ ही दिल्ली के पडोसी शहर और राज्य भी इस खतरनाक प्रदूषण की चपेट में हैं, जिसका प्रमुख कारण है पंजाब, हरियाणा व आसपास के किसानों द्वारा पराली/फसलों के बचे अवशेष जलाना। जिसके जलने के बाद प्रदूषित छोटे-छोटे कण हवा के साथ मिल जाते हैं। दूसरा, यह भी हमें समझने की आवश्यकता है कि सरदी व वातावरण ऐसा होने से यह जहरीली हवा धुंध बनकर नीचे ही नीचे जमी रहती है जिसका आलम यह है कि प्रदूषण कम होने की बजाए दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। रविवार को रात 10 बजे pm2.5 ही 1000 को पार कर गया, यह पिछले 17 साल की रिकार्ड तोड धुंध मानी गयी। अब किसी शहर के लिए इससे भी ज्यादा चिंता की खबर क्या होगी कि उसे प्रदूषण ज्यादा होने की वहज से नागरिकों को घर से बाहर न निकलने की चेतावनी जारी करनी पड़े। अगले तीन दिन सभी स्कूलों की सरकारी छुट्टी का भी ऐलान भी किया गया है। लोगों से अपील है कि वे ज्यादा से ज्यादा घर में ही रहें, व कूडा न जलाएं, जनरेटर न चलायें, कहीं जाना हो पब्लिक एसी ट्रांस्पोर्ट या कार पूलिंग का प्रयोग करें। प्रदूषण को देखते हुए कुछ दिनों के लिए बाहर से आने वाले ट्रकों को शहर में प्रवेश पर रोक लगाने की कोशिश भी की गयी। लेकिन इन उपायों का कोई उल्लेखनीय नतीजा नहीं निकल पाया।

ये हवा में घुले जहरीले प्रदूषण व रसायनों से लोगों के फेंफडो व गुर्दों वहैराह पर बुरा असर पड रहा है। साथ ही ये सामान्य है कि लोगों को खांसी-जुखाम, सिरदर्द, बुखार जैसी परेशानी भी झेलनी पड़े। दिल्ली सरकार भी इस खतरनाक चुनौती से निपटने के उपाय तलाशने मे जुटी है। ऐसे में फ़िलहाल दिल्ली जिस स्थिति से गुजर रही है, उसमें लोगों को इंतजार है कि कब तेज हवाएं चलें. बारिश हों और जहरीले कण नीचे बैठ जाएँ जिससे कुछ राहत मिल सके।

लेकिन जितनी आवाज व्यवस्था के खिलाफ दिल्ली के समझदार लोगों द्वारा उठाई जा रही है, वो लोग अपने कर्तव्य का पालन करना ही जरुरी नहीं समझते। हैरानी की बात ये भी है कि सब कुछ जानते हुए भी पटाखे, परली, फसलों के अवशेष, कचरा आदि जलाने और अकेले वाहनों में बिना बात घूमने वालों की भी कमी नहीं है। ऐसे आधे अधूरे समझदार लोग भी चिंतित दिखते हैं।

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

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