"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

दावे कुछ हकीकत कुछ

{[['']]}

प्रधानमंत्री मोदी जी ने अपनी अचानक से 8 नवम्बर को की गयी घोषणा से पूरे देश सहित पूरे विश्व को ही चौंका कर रख दिया। माना ये भी जा रहा था कि अब सब सही होगा और देश तरक्की की नयी राह को पकड़ेगा। लेकिन दावे कुछ किये जाते हैं और हकीकत कुछ सामने आती है। जी हाँ, बिलकुल सही पढ़ा आपने। हमें सभी को लगा था कि ये फैसला आम, गरीब, ईमानदार जनता से हटकर भ्रष्ट और बेईमान लोगों को सबक सिखाने के लिए किया गया फैसला होगा। पर लोगों को कतार में खड़े खड़े कुछ भी हासिल नहीं हो रहा, मात्र इसके कि वो पुराने नोट बदलकर नए ले जा रहे है। हम लोग किसी धन्ना सेठ, नेता, अभिनेता, पूंजीपति, बिजनेसमैन, उद्योगपति, बिल्डर, पुजारी, ब्यूरोक्रेट्स जैसे बड़े लोगों को कतार में देखने में असमर्थ है। ऐसा लगने लगा है कि काला धन आम जनता के ही पास था जो वो बैंकों में जमा करने के लिए वे कतार में लगे हैं।

 वैसे तो मोदी जी के फैसले का देश की जनता ने समर्थन किया है लेकिन दिनों दिन बीतते-बीतते अब ये बात भी खलने लगी है कि आखिर इन सब में वाकई देश का हित था? अगर नहीं.. तो हित किसका था? जनता को तो लगा था कि बेईमानों पर चोट लगेगी और काला धन रखने वाले धन-कुबेरों का बहुत भारी पैसा रद्दी के मात्र कुछ टुकड़े में बदल जायेगा लेकिन सरकार के रोज रोज नए फरमान और नियमों के आने से, जनता मायूस हो रही है। सबसे ज्यादा फायदा तो राजनीतिक पार्टियों को ही दिखाई देता है, वे लोग जितना मर्जी धन जमा कर लें। उन पर न तो कोई टैक्स लगेगा और न उनसे उनके जमा पैसे का कोई स्रोत ही पूछा जायेगा

तो क्या सिर्फ आम जनता बेईमान है और सारे नियम जनता के ही लिए हैं। नोटबंदी के इतने दिन हो जाने के बाद भी सबसे ज्यादा तकलीफ में आम जनता, गरीब और किसान लोग ही नज़र आते हैं। 

इससे बेहतर होता कि कोई अच्छी और दुरुस्त नीति पर ध्यान दिया जाता जो सौ प्रतिशत में से उन अठान्बे फीसद काले धन पर हमला करती जो सोने के रूप में, रियल एस्टेट और विदेशी बेंकों में जमा है। पर शायद उससे उन बड़ी मच्छलियों को भी समस्या उत्पन्न हो सकती थी जो सरकार में हैं और या फिर किसी न किसी मोड़ पर सरकार या बड़े लोगो को मदद कर रही हैं

वैसे तो नोटबंदी सिर्फ काले धन के भंडार पर हमला करता है, उसके प्रवाह पर नहीं। यानी इससे भविष्य में होने वाले भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आएगीअसल में समस्या बड़े नोटों को नहीं, चरित्र और नैतिक मूल्यों की है, जिनका हमारे देश में आभाव है

About Admin:

मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

Post a Comment