सफलता कैसे..?? जबतक धैर्य नहीं

आज का समय एक आधुनिक समय है। हर कोई कम समय में कुछ न कुछ कर दिखाना चाहता है। युवा पीढी से भी यही अपेक्षा की जाती है कि वे तुरंत ही कम समय में कुछ कर दिखायें। जितनी भी सफलता उन्हे लेनी है वे जल्दी ही प्राप्त कर लें। माता-पिता में आज कल ये प्रवृत्ति आम हो गई है कि वे अपनी संतानों से वे अपेक्षा करते हैं जो वे अपने जीवनकाल में नहीं प्राप्त कर पाये, इस पूरे झोल में आज का युवा वर्ग फंसा रहता है कि कुछ कर दिखाऊं लेकिन थोडे ही समय में। लेकिन इस तुरंत सफलता प्राप्त कर लेने के चक्कर में वे अपना धैर्य  खोते चले जा रहे हैं। भागदौड भरे इस जीवन में सफलता के साथ-साथ धैर्य भी जरूरी है, जो हमें हमारे लक्ष्य के साथ जोडे रखता है। लेकिन किसी काम को सीखने में या किसी परीक्षा की तैयारी में जितनी मेहनत, लगन व समय देना चाहिये उससे आधा भी नहीं लग पाता। और ऐसे में सफलता और लक्ष्य दूर दिखाई देने लगते हैं। आजकल जो उच्च महत्वाकांक्षाएँ घर कर गई हैं वही इस संपूर्ण विषय की मूल जड़ है जो प्राय युवाओं को उनके लक्ष्य से दूर ले जाती है। क्योंकि यदि उच्च महत्ताकांक्षाएं हैं तो धैर्य बिना सफलता प्राप्त नहीं हो सकेंगी। जल्दबाजी व तुरंत सब होने की चाह भी पूरी मेहनत पर पानी फेर देता है। और ऐसे में हम लोग क्यों न कठिन से कठिन परिस्थिति में भी, कड़ी से कड़ी मेहनत क्यों ना कर रहे हों लेकिन यदि धैर्य हम खोते चले गए तो इतनी मेहनत का कोई लाभ हमें नहीं होने वाला।

यहाँ लाभ का मतलब केवल कोई नौकरी या कोई बड़ी भारी उपलब्धि पा लेने मात्र से नहीं है अपितु मानव जीवन में भी धैर्य और संयम बहुत जरुरी होता है। पल-पल, कदम-कदम पर यदि हम में धैर्य, संयम नहीं हैं तो मानव जीवन ही व्यर्थ है। धैर्य का एक अर्थ यह भी है कि शांत रहते हुए सकारात्मक ढंग से अपने आप को आगे कैसे ले जायें। जब सरल से सरल कार्य भी न हो पाए, हमारे अनेकों प्रयास विफल हो जायें और हमारी हताशा व निराशा एक जगह ही रुक जाये तब यही धैर्य हमारा बुरे वक्त में काम आता है। इन परिस्थितियों में भी विचलित ना होते हुए और अपने अनुभवों को एक सीख के तौर पर लेते हुए जब हम धैर्य के साथ आगे बढेंगे तब हम निश्चित ही अपनी सफलता को प्राप्त कर पाएंगे। 

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