"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

आये थे बनके, जिंदगी में मेरी

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आये थे बनके, जिंदगी में मेरी,
एक तौफ़ानी हवा का झोंका,

याद है मुझको अब भी, सब कुछ,
तेरा वो अनजाना सा चेहरा,

हकीकत की रौशनी, मासूमियत का पहरा,
अधूरापन सिमट कर, था जब फैला 
पल भर में बने थे, तुम मेरे दोस्त,

रोशन हुई, जो अँधेरी ज़िन्दगानी ,
तब शुरू हुई तेरी मेरी कहानी,

कल जब, मैं बैठा था, 
तो तुम चले जाते थे,
आज तुम बैठे हो,
तो मैं चला जाता हूँ,

एक थपथपाहट सी भी, दिल में जमी बैठी है,
वही सनसनाहट सी, मुझे झंझोर देती है,

टुकड़े-टुकड़े जिंदगी कटती जा रही है,
अध्बुने धागों से बुनती जा रही है,

याद है मुझे, अब भी हर बात वो तेरी,
आये थे बनके जब जिंदगी में मेरी 
आये थे बनके जब जिंदगी में मेरी।।

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

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