हरियाणा सरकार ने आखिर गुड़गांव का नाम बदल ही दिया, और मंजूरी दे दी गुरूग्राम को। वैसे तो हम सभी जानते ही हैं कि ये प्रस्ताव काफी पहले से ही था लेकिन कुछ अड़चनों के चलते इस पर फैसला लिया ही नहीं गया। पर ये पहली बार नहीं हुआ, ऐसा पहले भी कई बार प्राचीन साक्ष्यों के आधार पर नामों में संशोधन किया जा चुका है। मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और भी नाम ऐसे ही बदल दिए गए। लेकिन फिर भी हरियाणा सरकार के इस फैसले के दावों को ज्यादा दमदार दर्जे का नहीं बताया जा सकता। हाँ, चलो मान लेते हैं कि थोड़े ही समय में नया नाम लोगों की जबान पर चढ़ जायेगा और धीरे -धीरे व्यवहार में भी शामिल हो जायेगा। लेकिन इन सब चीज़ों के बीच मुख्य प्रश्न तो ये है कि यदि यूँ ही अब तक चले आ रहे नाम बने रहते तो हर्ज़ ही क्या था। साथ ही प्राचीन साक्ष्यों के आधार पर नामों में परिवर्तन कर देने मात्र से वास्तव में लाभ क्या होगा। ठीक है, सब जानते है प्राचीन आधार पर गुड़गांव का नाम गुरु द्रोणाचार्य के नाम से आया और तब इसको गुरुग्राम के जाना और पहचाना जाता था। हरियाणा सरकार का ये भी तर्क सामने रखा कि इससे सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने में मदद मिलेगी। पर केवल नाम को बदल देने से गुड़गांव की प्राचीन विरासत, सांस्कृतिक पहचान और गरिमा लौट पायेगी, दावा करना मुश्किल है। भाषा वैज्ञानिक मानते हैं कि शब्दों का उच्चारण हम लोग अपने बोलने की सुविधा के मुताबिक बदल लेते हैं। गुरुग्राम के साथ भी यही हुआ होगा। गुरु बोलते बोलते गुर हो गया, ग्राम को गांव बोल देने में कोई परेशानी नहीं होती शायद ज्यादा सरल लगता है। लोग अपनी सहजता के अनुसार र को ड बोल देते हैं। शायद इसी प्रकार गुरुग्राम गुड़गांव बन गया होगा। इस तरह कई बार बहुत सारे शब्द घिसते घिसते एक अलग सा स्वरुप ग्रहण कर लेते हैं। लेकिन इससे कोई दिक्कत वाली बात होना समझ नहीं आता।
गुड़गांव आज के समय में हरियाणा का सबसे उन्नत और अंतर्राष्ट्रीय तौर पर अपनी एक पहचान वाला शहर है। कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के दफ्तर भी यहाँ देखने को मिल सकते हैं। अब इन सबके चलते वहां एक आधुनिक संस्कृति विकसित हो चली है, जिसको वर्तमान में अपने को स्थापित करना है। इस कारण नाम में परिवर्तन हो जाने मात्र से इस वाणिज्य क्षेत्र को काफी नुकसान उठने का भी दावा किया जाने लगा है।
अब कहना तो नहीं चाहिए लेकिन मैं तो यही कहूंगा, कि नाम में क्या रखा है। अब सिर्फ आपके अपने वैचारिक आग्रह के चलते नाम बदल दिया जाता है और उधर अगले लोगों के अपने व्यवसाय और व्यवस्था पर लगाए करोडो रूपयों की देखते ही देखते होली जल जाती है।
अब कहना तो नहीं चाहिए लेकिन मैं तो यही कहूंगा, कि नाम में क्या रखा है। अब सिर्फ आपके अपने वैचारिक आग्रह के चलते नाम बदल दिया जाता है और उधर अगले लोगों के अपने व्यवसाय और व्यवस्था पर लगाए करोडो रूपयों की देखते ही देखते होली जल जाती है।
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