"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

मैंने क्या किया है?

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मैंने क्या किया है?
आप जानते तो होगे, 
मैं तो जानता नहीं,
समझना आता नहीं, समझाना सीखा नहीं,
कहना तो जानता हूँ, लेकिन कब ये पता नहीं,

कैसे कहूँ, बड़ी मुश्किल है,
लागता है दिल-दिमाग पर काबू नहीं,
शायद कोई बंदिश है,
जो लागू मुझपर होती है, 

न जाने क्यों जकड़े हुए है मुझको,
निर्दोष की सुनने वाला कोई तो हो,

क्या होगा आगे, क्या नहीं?
मैं कुछ नहीं कह सकता 
हर सवाल का जवाब बस यही कि मैंने क्या किया है?

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।