"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

जन्म और मृत्यु अलग अलग नहीं

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इस दुनिया में जिसने भी जन्म लिया है,उसकी मृत्यु होना अवश्यम्भावी है। लेकिन फिर भी लोग मरने पर दुःख  का और किसी के पैदा होने पर सुख का अनुभव करते हैं। जबकि यह एक शारीरिक परिवर्तन की एक नियमित तौर पर होते रहने वाली साधारण प्रकिया है। जैसे जन्म के बादबचपन,उसके बाद युवावस्था ,प्रोढावस्था तथा अंत में वृद्धावस्था आती है,उसी प्रकार मृत्यु भी एक प्रकार से उस जन्म कि एक शारीरिक अवस्था है। मृत्यु के बाद केवल देहान्तरण होता है,बाकी कुछ भी परिवर्तन नहीं होता है। 

आम व्यक्ति यह सोच कर मृत्यु से भयभीत रहते हैं कि अगले जन्म में यह सब खो जायेगा। परंतु यह सत्य से परे है। आप को सब कुछ वैसे ही मिलेगा जैसा आपने यहाँ सोचा है और पाया है। केवल व्यक्ति,स्थान और संबधों का  परिवर्तन हो सकता है। एस प्रकार देखने से आम आदमी का मृत्यु से भय का कारण निराधार है। यही माना जाना चाहिए। 

गीता में भगवान ने साफ कहा है ---
"वासांसि जिर्नानी यथा ...............नारोपराणी। "

अर्थात, जिस प्रकार हम कपडे फट जाने पर कपडे बदलते हैं उसी प्रकार शरीर के जीर्णशीर्ण हो जाने पर केवल शरीर परिवर्तन होता है.। देहांतरण को इसी प्रकार समझना चाहिए। 

अतः भगवान के अनुसारमृत्यु केवल शरीर की  एक अवस्था का  परिवर्तन है। इसमें और कुछ भी परिवर्तित नहीं होता है। अतः मृत्यु से भयभीत होना अनावश्यक है। 

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

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