"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

साथ ना रह पाये तो

{[['']]}
हो सके या ना हो सके,
दुनिया में जो खो ना सके,
मंजिलों को पा ना सके,
साथ वो अब, रह ना सके,
मेरे लिए, क्या सब है,
जो खोया है मैंने,
शायद वो रब है,

खोयी यादों के गलियारों में,
बेजान से मस्ती अब रहती है,
समंदर में जिस तरह अकेली कशती तैरती है,

मुमकिन होता जो होता,
पर साथ ना रह पाये तो क्या होता , 

अकेलेपन की काई में, 
खुद को उसमें सिमटते देखा,
मबूरियत की घड़ी में अपनों को 
साथ न रह पाते देखा,

फाँसलों में खुद को देखा,
दूर खड़े अपनों को देखा,

लम्हे बर्बाद, जीवन बेकार, मैं गया हार , दुनिया फरार
दिल,धड़कन, दिमाग…सब साथ ना रह पाये तो .... ??


About Admin:

मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

Post a Comment