"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

कब कौन किसी का होता है, सब झूठे रिश्ते नाते हैं

{[['']]}
कब कौन किसी का होता है,
सब झूठे रिश्ते नाते हैं,

सब दिल रखने की बातें हैं,
सब असली रूप छुपाते हैं,

एक बार निगाहों में आ कर के... 
फिर सारी ज़िन्दगी रुलाते हैं,

कितने चेहरे है इस दुनिया में...
सब का एक चेहरा नज़र आता है,

इंसानों की भीड़ में, घुल मिल सा सब कुछ जाता है,
जाने-पहचाने भी भीड़ में अनजाने से बन जाते हैं,

पहचानते हुए भी… सब अजनबी से पेश आते हैं। 

About Admin:

मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

Post a Comment