"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

असलियत हर कोई जानता है

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असलियत हर कोई जानता है,
फिर क्यों...?
हर कोई इससे भागता है 

नहीं शौक किसी की बर्बादी का,
नसीब खराब हो तो कोई कर भी क्या सकता है ?

मुसीबतों का सामना करने से नाजाने हर कोई क्यों डरता है?
असलियियत कोई जान भी ले तो कौन उसे बदलने की कोशिश करता है?

सवाल सवाल बस सवाल ये ही जहन में हर बार यही उठता है,
इंसान असलियत जानकर भी अनजान क्यों बनता है ?

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

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