"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

गाँधी जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं

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आज 2 अक्टूबर को ही जन्में थे,
अहिंसा की जो.. साक्षात् मूरत थे,
पिता थे.. उनके करमचंद गाँधी...
माँ उनकी पुतलीबाई,
नाम रखा था उनका मोहनदास,
लेकिन.. पढाई में न मन लगता... न थी कोई उन्हें आस,

क्योंकि नहीं थे ... अत्यधिक वो अव्व्वल,
लेकिन जीना चाहते थे... ख़ुशी से हर एक पल,
सबकी तरह बचपन में.. खेला करते थे,
शरारतों में ही मन .. रंगाया करते थे,

13 बरस में ही कर दी गयी... उनकी शादी,
क्योंकि बाल-विवाह... तब की थी महामारी,
बड़ी मुश्किल से... मेट्रिक  पास हुए,
तब जाकर ...आगे के लिए तैयार हुए,

लंदन जाकर पढाई की,
माँसाहारी खाने की... वहां भी मनाई की,
बेरिस्टर..  भले ही बन गए थे,
लेकिन.. स्वभाव  से बिलकुल बदल गए थे,

दक्षिण अफ्रीका में... अपमान बहुत उन्होंने झेला था,
ट्रेन में पहले कोच में रिजर्वेशन होने पर भी ... उन्हें वहां ट्रेन से बहार फेंका   था,
प्रण लिया उन्होंने तभी .. मन में.. 
इस रोग को.. समाप्त  जरुर... करना है, 
रंग भेद ... को उखाड़ फेंकना है,
बहुत सह लिया सब कुछ.. अब उन्होंने इसका विरोध किया,
काले-गोरे के भेद .. में एक सम्मानित सबको अधिकार दिया,

सब ठीक कर वापस आये और 
दंग रह गये .. उन्होंने जो भारत में देखा,
अंग्रेजो ने लाँघ दी थी.. बची हुई सब शासन की रेखा,
त्याग दिया सब कुछ ...तभी उन्होंने..
बस खाली कराने थे.. अंग्रेजो से भारत के हर एक कोने ,
अहिंसा से सबक देना चाहते थे..
लेकिन .. उनकी बात कुछ ही लोग तब मानते थे,

चंपारण, असहयोग, दांडी से..
भारत में अपना नाम किया,
सत्य, अहिंसा और मानवता से सभी के दिलोजुबान पर राज किया,
भटक रही थी जो... भारत की जनता,
उनके साथ मिलकर "भारत छोड़ो" का आगाज़ किया,

इसी कारण अंग्रेजो ने उन्हें बंदी बनया..
गाँधी जी ने ख़ुशी-ख़ुशी अपने जीवन के वो दो साल.. जेल में ही बिताये ,
लेकिन अपना हाथ कभी ..किसी पर भी न उठाये,

आज़ादी दिलाने में .. अहम् भूमिका निभाते रहे,
भारत से अंग्रेजो को... लगातार भगाते रहे,
आखिरकार अपने आन्दोलन में... सफल रहे,
बस एक गलती को... सबसे छुपाते रहे,

सब भूल गये थे..बंटवारे को ... 
मगर नाथूराम को बात रास... नहीं आई थी,
30 जनवरी..को "बिरला हाउस" जाते वक्त.. उसने उनपर.. गोली वहीँ चलायी थी,

आखरी शब्द "हे राम"... कहते ही ..उन्होंने शरीर.. अपना जब छोड़ा था,
राष्ट्रपिता की हत्या पर ..उस दिन भारत के साथ पूरा विश्व रोया था,

"ऐसे थे राष्ट्रपिता हमारे... जिसको पूरे विश्व में आज भी जानते है,

भूल ना सकेगा कोई जब तक... आसमां में सूरज,चाँद और तारे है"

पीताम्बर शम्भू 

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।