"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

सहजयोग : सबसे बड़ी कुंजी

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हमारी प्राचीन विरासत कई तकनीकों का भंडार है जो आज की तनावपूर्ण दुनिया में हमारे बचाव के लिए सामने आती हैं। सहज योग उनमें से एक है। इसका उल्लेख गुरु नानक, शंकराचार्य, कबीर और संत ज्ञानेश्वर आदि के प्रवचनों में मिलता है। यह किसी की मानसिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक भलाई के लिए अमूल्य है। श्रीमाताजी निर्मला देवी जी ने इस तकनीक को 90 से भी अधिक देशों में लोकप्रिय बनाया है और तनाव व पीड़ा के साथ आनेवाले थके हुए लोगों की सहायता की है। सहज योग कुंडलिनी-दिव्य ऊर्जा है, जो प्रत्येक मनुष्य के शरीर में मेरुदंड के नीचे त्रिकोणाकार अस्थि में स्थित होती है, जो सुषुमना नाड़ी, रीढ़ की हड्डी द्वारा उत्तेजित होने पर बढ़ती है, और तंत्रिका तंत्र के अनुरूप होती है।

यह परमात्मा की सभी सर्वव्यापी शक्ति के साथ एक सहज जागृति और हमारी मौलिक ऊर्जा का मिलन है। कुंडलिनी की जागृति, दिव्य ऊर्जा को उन सात चक्रों या ऊर्जा केंद्रों के माध्यम से प्रवाहित होने की अनुमति देती है, जो शरीर के शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक पहलुओं का ध्यान रखते हैं, आज की तेजी से आगे बढ़ रही दुनिया में हम अक्सर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हम खुद को निचोड़ लेते हैं। तनाव उसी का परिणाम है और यह हमारे शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव भी डालता है। लेकिन सहज योग स्वयं को तनावमुक्त रखने का सबसे आसान तरीका है।

यह हमें प्रेम और करुणा का अनुभव करने में सक्षम बनाता है। सहज योग का क्या अर्थ है? ‘सह’ का अर्थ है हमारे साथ, ‘ज’ का अर्थ है पैदा हुआ और ‘योग’ का अर्थ है संघ। सहज योग इसलिए सहज है। इसके माध्यम से त्रिकोणाकार हड्डी में स्थित दिव्य ऊर्जा, जागृत और सक्रिय रहती है। हमारे शरीर में तीन प्रकार की नाड़ियाँ हैं, पहली है इडा नाड़ी, सहानुभूति तंत्रिका तंत्र, जो बाईं ओर स्थित होती है और हमारे स्वभाव को नियंत्रित करता है। दूसरी है पिंगला नाड़ी, सहानुभूति तंत्रिका तंत्र, जो दाईं ओर स्थित होती है और हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नियंत्रित करता है। तीसरी है सुषुमना नाड़ी परानुकंपी तंत्रिका तंत्र, जो केंद्र में स्थित होती है और इसमें सात मुख्य चक्र होते हैं जो हमें गुणात्मक विशेषताएं प्रदान करते हैं।

यदि कोई व्यक्ति इस नाड़ी में स्थित सभी सात चक्रों को सक्रिय करता है, तो वह आध्यात्मिक ऊँचाई पा सकता है और पूर्णता के साथ अपने जीवन का आनंद ले सकता है। सहज योग में मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, नाभि चक्र, अनाहत चक्र, शुद्धि चक्र, आज्ञा चक्र और सहस्रार चक्र नामक सात चक्र शामिल हैं। ये सभी चक्र, हाथ व पैरों में भी एक खास स्थान के लिए और ब्रह्मांड के एक विशेष तत्व से संबंधित होते हैं। प्रत्येक चक्र में विशेष गुण होते हैं।

पहला मूलाधार चक्र, पृथ्वी तत्व को दर्शाता है और मासूमियत व बुद्धि जैसे गुणों के लिए उत्तरदायी होता है। दूसरा स्वाधिष्ठान चक्र, आग तत्व का प्रतिनिधित्व करता है और रचनात्मकता और दिव्य ज्ञान के लिए उत्तरदायी होता है। तीसरा नाभि चक्र, पानी का प्रतिनिधित्व करता है और हमें जीविका और धर्म प्रदान करता है। चौथा अनाहत या हृदय चक्र हवा का प्रतिनिधित्व करता है और प्रेम, मर्यादा, और निर्भयता जैसे गुणों के लिए उत्तरदायी होता है। यह आत्मा को जगाता है। आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करनेवाला पाँचवा विशुद्धि चक्र दिव्य कूटनीति के साथ जुड़ा हुआ है। यह मन और भाषण के बीच एकीकरण को बनाए रखता है। भाषण महत्वपूर्ण होता है और सोच व भाषण के बीच एक उचित समन्वय बेहतर संचार को सफल बनाता है।

छठा आज्ञा चक्र, प्रकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करता है और क्षमा व पुनर्जागरण के लिए उत्तरदायी होता  है। तनाव में होने पर हम अपने मस्तिष्क की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं कर सकते हैं। तनाव और क्रोध को नियंत्रित किया जाना चाहिए। यदि रीढ़ की हड्डी का यह क्षेत्र जागृत हो जाता है, तो हम अपने क्रोध को नियंत्रित कर सकते हैं। अंतिम सातवां चक्र है सहस्रार चक्र, यह ब्रह्मांड के सभी पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है। यह हाथ की हथेली के केंद्र में स्थित होता है। यह चक्र सामूहिक चेतना और एकीकरण के गुणों के लिए उत्तरदायी होते हैं। सहज योग मन की समस्याओं और शरीर को सुलझाने के लिए सबसे बड़ी कुंजी है।
जय श्री माता जी 

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