"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

व्यापम बाहर नहीं, अन्दर है...

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आज जहाँ तहाँ देखो भ्रष्टाचार की महामारी चारों ओर फैली हुई है। अब यह भ्रष्टाचार इतना व्याप्त हो गया है कि व्यापम नाम भ्रष्टाचार का एक प्रमुख नाम सा लगने लगा है। इसलिये हम कह सकते हैं कि "व्यापम बाहर नहीं, अन्दर है।" हर उस व्यक्ति के अन्दर है जो अपना काम करने से जी चुराता है और ना करने के बहाने बेईमानी करने से भी नहीं हिचकता।
व्यापम इस बात का सबूत है कि भ्रष्टाचार ऊपर से ले कर नीचे तक कैसे सर्वव्यापी हो चुका है. यानी अब हालत यह है कि आप अपने डाक्टर, इंजीनियर, आर्किटेक्ट, वैद्य, नर्स, वकील वग़ैरह-वग़ैरह की योग्यता पर भी भरोसा नहीं कर सकते कि उसने जो डिग्री टाँग रखी है, वह उसके वाक़ई लायक़ है भी या नहीं! जो शिक्षक फ़र्ज़ी तरीक़ों से नौकरी पा गये, वे बच्चों को क्या पढ़ा रहे होंगे, यह समझा जा सकता है।
सब तरफ़ व्यापम ही व्यापम है! वह व्यापक है, यहाँ, वहाँ, जहाँ नज़र डालो, वहाँ व्याप्त है! साहब, बीबी और सलाम, ले व्यापम के नाम, दे व्यापम के नाम! व्यापम देश में भ्रष्टाचार का नया मुहावरा है, जिसमें कोई एक, दो, दस-बीस, सौ-पचास का भ्रष्टाचारी गिरोह नहीं, हज़ारों हज़ार भ्रष्टाचारी हैं. नेता से लेकर जनता तक, सबने इस गोरखधन्धे में अपनी-अपनी मलाई खाई. सोर्स-सिफ़ारिश, धनबल, बाहुबल, देह शोषण से लेकर क्या नहीं हुआ एडमिशन और नौकरियाँ लेने-देने के फेर में! यह शायद देश में भ्रष्टाचार का ऐसा पहला मामला है, जो आम घरेलू परिवार से लेकर सत्ता के गलियारों और शिखर तक, वकील, डाक्टर, मीडिया, अफ़सर, पुलिस से लेकर क़ानून के दरवाज़ों तक एक समान रूप से व्याप्त हुआ. ऐसे व्यापी व्यापम में कौन नहाया, कौन नहीं नहा पाया, कौन जाने?

चारे से व्यापम तक..

ज़ाहिर-सी बात है कि व्यापम जब बना होगा, तब इस काम के लिए नहीं बना होगा, जिसके कारण आज वह इतना बदनाम हो चुका है. वह बनाया इसलिए गया था कि राज्य के व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की प्रवेश परीक्षाओं के लिए कोई एक मानक हो सके, कोई एक तंत्र हो जो सही तरीक़े से इन परीक्षाओं का संचालन करे. और नतीजा क्या हुआ? इसने भ्रष्टाचार के एक सुसंगठित और विशाल तंत्र को जन्म दे दिया, जिसमें एक-एक कर सब शामिल होते चले गये!


बिहार का चारा घोटाला, उत्तर प्रदेश का एनआरएचएम घोटाला और पुलिस भर्ती घोटाला, हरियाणा का शिक्षक भर्ती घोटाला और मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला, अलग-अलग पार्टियाँ, अलग-अलग सरकारें, अलग-अलग प्रदेश, लेकिन कहानी लगभग वही, तरीक़े भी लगभग वही, चरित्र भी कमोबेश लगभग वही और घोटालों से सत्ता का रिश्ता भी लगभग वही. इनमें चारा घोटाला, एनआरएचएम घोटाला और व्यापम घोटाले में तो रहस्यमय मौतों की कहानी भी लगभग वही. इसमें अब अगर 2 जी, कोयला ब्लाक आवंटन और राष्ट्रमंडल खेल घोटालों को भी जोड़ दें तो तसवीर पूरी हो जाती है! फिर भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कौन कुछ करेगा या करना चाहेगा? इसलिए भ्रष्टाचार के छोटे-बड़े मामलों की ख़बरें लगातार आती-जाती रहती हैं, छपती रहती हैं, कुछ मामले तो पहले ही दब-दबा जाते हैं, कुछ पर जाँच शुरू होती है, कुछ में सबूत नहीं मिलते, जिनमें मिल जाते हैं, वे मामले अदालत पहुँचते हैं, उनमें कुछ में ही सज़ा हो पाती है, बाक़ी छूट जाते हैं और राजकाज यथावत चलता रहता है! ज़ाहिर है कि राजनीति चला रहे लोग तो भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कुछ करने से रहे. उनके लिए भ्रष्टाचार मिटाने का संकल्प चुनाव दर चुनाव महज़ एक जुमला है!


अन्ना आन्दोलन क्यों हुआ हवा-हवाई?


अन्ना हज़ारे ने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ बड़ा आन्दोलन छेड़ा. पूरा देश सड़कों पर आ गया. लेकिन हुआ क्या? होना भी क्या था? वह आन्दोलन जनता को भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ सड़कों पर तो उतार लाया, वह राजनीति को भ्रष्टाचार से मुक्त करने की बात तो करता था, लेकिन जनता को भ्रष्टाचार से मुक्त करना उसका एजेंडा नहीं था. जनता भ्रष्टाचार से लड़े, घर-घर और गली-गली भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कोई चेतना फैलायी जाये, और भ्रष्टाचार जब तक लोक-संस्कार में वाक़ई अस्वीकार्य न बना दिया जाये, तब तक उसके ख़िलाफ़ लड़ाई जारी रहे, ऐसा कोई एजेंडा, ऐसी कोई योजना, ऐसा कोई इरादा, ऐसी कोई तैयारी अन्ना आन्दोलन में थी ही नहीं, इसलिए एक लोकपाल की घोषणा के बाद अन्ना चुसे हुए आम जैसे बेकार हो गये! और हुआ क्या? लोकपाल अब तक नहीं आया! कब आयेगा, पता नहीं! और आ भी जायेगा, तो भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कुछ कर पायेगा, कह नहीं सकते!

हम सब में थोड़ा-थोड़ा व्यापम!

व्यापम इस बात का सबूत है कि भ्रष्टाचार ऊपर से ले कर नीचे तक कैसे सर्वव्यापी हो चुका है. यानी अब हालत यह है कि आप अपने डाक्टर, इंजीनियर, आर्किटेक्ट, वैद्य, नर्स, वकील वग़ैरह-वग़ैरह की योग्यता पर भी भरोसा नहीं कर सकते कि उसने जो डिग्री टाँग रखी है, वह उसके वाक़ई लायक़ है भी या नहीं! जो शिक्षक फ़र्ज़ी तरीक़ों से नौकरी पा गये, वे बच्चों को क्या पढ़ा रहे होंगे, समझा जा सकता है. और भ्रष्टाचार यहीं तक नहीं रुकता. आपके खाने में मिलावट है, दवा नक़ली है, सब्ज़ी और फल में कीटनाशक का ज़हर है, दूध सिंथेटिक है, पर्यावरण ख़राब है, नदी ज़हरीली हो गयी, यह सब किसी न किसी के भ्रष्टाचार का ही नतीजा है.

और व्यापम इस बात का भी सबूत है कि भ्रष्टाचार न होने देने के लिए हम जितने नये तंत्र बनाते हैं, उनमें से ज़्यादातर उस भ्रष्टाचार को और ज़्यादा व्यापक, और ज़्यादा संस्थागत बना देते हैं. क्यों? इसलिए कि व्यापम बाहर नहीं, अन्दर है! अन्दर झाँकिए जनाब. हम सबमें थोड़ा-थोड़ा व्यापम है. जिस दिन उसे ख़त्म कर देंगे, बाहर का व्यापम अपने आप ख़त्म हो जायेगा! है कोई अन्ना हज़ारे यह चुनौती लेने के लिए तैयार?

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

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