"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

संविधान निर्माता भारत रत्न बोधिसत्व बाबा साहेब डॉ. भीम राव अम्बेडकर जी के 126वें जन्मदिवस के दिन शत शत नमन

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14 अप्रैल 1891- 6 दिसंबर 1956 

"संविधान निर्माता भारत रत्न बोधिसत्व बाबा साहेब डॉ. भीम राव अम्बेडकर जी के 126वें जन्मदिवस के दिन कृतज्ञ राष्ट्र शत शत नमन करता है..... "

"भारत रत्न डॉ. बाबा साहेब भीमराव रामजी अम्बेड़कर जी" ने शोषितों के लिये सम्मान की जिन्दगी दिलाने के लिये महतवपूर्ण कार्य किया । दलित लोगों के प्रति अत्याचार बहुत घिनोना था । आज के समय में कोई यकीन नहीं करेगा कि... एक ही समाज में रहने वालों में.… दलितों के लिए घृणा ऐसी थी कि ऊँची जाती के लोग दलितों को अपने पास बैठना, राह से गुजरना, बातें सुनना, उनसे बातें करना, पढ़ाई करना आदि कुछ भी पसंद नहीं करते थे।  और भी बहुत सी चीज़ें  ऊँची जाति के लोग पसंद नहीं करते थे।  चलो ठीक है.… ये बात कोई जरूरी नहीं… लेकिन सिर्फ इतनी सी बात के लिए दलितों को मारा-पीटा जाता था, यही नहीं यदि मंदिर में पढ़ी जाने वाली गीता के कुछ शब्द सुन लिए तो खौलते कांच को पिघलकर उस दलित के कान में डाला जाता था। ऐसा इसलिए क्योंकि "मनुस्मृति" लोगो के दिमाग का हिस्सा बन चुकी थी।  लोगों ने जातिवाद को बढ़ावा दिया हुआ था।  मनुस्मृति के अनुसार चलते चलते लोग इतने भयानक हो चुके थे कि दलितों को ऊँची जाति वाले "अछूत" कहने लगे, वे अब जानवर से तो प्रेम करते थे लेकिन इंसान को इतना भयानक दंड। शायद आपको यकीन ना हो ,पर यही सच है।  .........

……. ये हमारे स्वतंत्रता संग्राम के दिनों से भी पहले से शताब्दियों से चलती आ रही गुलामी से बत्तर जिंदगी है, जिसकी आलोचना तो लगभग सभी ने की। गांधीजी ने स्थिति सुधरने का प्रयास किया पर पूर्णतया सफल नहीं क्योकि वे दलितों  पर हुए अत्याचार को जानते जरूर थे पर महसूस नहीं कर पाये। मगर इसको सुधरने का पूर्णतया प्रयास सिर्फ उन्ही लोगो ने शुरू किया जो… स्वयं दलित थे - महात्मा फूले और बाबा साहेब अम्बेडकर जी।  ये जानते थे की लोगों में क्या हुआ और क्या सहा और कैसे सहा और किसने कितना सहा  ? बचपन से अपने कटु सत्य को साथ लिए इन्होने क्रांति करने का प्रयास किया और अम्बेडकर जी अंततः सफल रहे।  अम्बेडकर जी के कार्यों की आलोचना भी हुई , लेकिन बाद में माना भी लिया गया।  उनकी शैक्षिक प्रतिभा को सभी जानते-पहचानते थे।  इस कारण उन्होंने दलितों की स्थिति सुधरने का जिम्मा अपने कन्धों पर लिया।  

…… सरकारी लोग अम्बेडकर जी की बातों को मान गये। उन्हें नए भारत का कानून मंत्री बनाया गया। वे इतने प्रभावित हुए उनसे कि संविधान को लिखने का जिम्मा, और उसका प्रारूप बनाने के लिए बाबा साहेब अम्बेडकर जी को ही चुना गया।  उस संविधान को बाबा साहेब ने एक जिम्मेदारी से निभाया, दलितों और शोषितों को अधिकार दिलाया।  यहीं नहीं सभी को सामान अधिकार दिया गया चाहे अल्पसंख्यक हो चाहे माहिला या किसी भी धर्म, संप्रदाय का हो। लेकिन उन लोगो को विशेष अधिकार और छूट दी गयी जो हर जगह पिछड़ गए थे।  दलितों को पढाई में और नौकरी में आरक्षण दिया गया।  लेकिन वह आरक्षण ऐसा है की आज भी इन आरक्षित सीटों को खाली देखा जाता है और अनारक्षित लोगों की नज़र है इन पर।  वे प्राय हमला करते है बाबा साहेब पर और दलितों पर।.. क्योंकि उन्होंने आरक्षण दिलाया।  लेकिन कोई ये जानता है कि दलितों के पास आज भी जमीनो पर पूरे अधिकार नहीं है वे आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में ऊँची-नीची जाति के चक्कर में फसें है। दलित लोग छोटी सी कुटिया बनाये पड़े रहते है एक ही घर मे… वहीँ दूसरे लोगों के पास पहले से ही जमीने थी, वो आज रिहाईश के सौदागर बने बैठे है।  शहरी इलाकों में भी यही जातिवाद फैला हुआ है…  लोग कहते है कि आऱक्षण खत्म हो…आऱक्षण खत्म हो.…  अरे आरक्षण के असली  कसूरवार तो हम लोग ही है… जो शताब्दियों से इंसान और इंसान में भेद कर बैठे।    मैं ये कहता हूँ.। फिलहाल आरक्षण सही है क्योंकि अभी भी लोगों में जातिवाद है.… पर ये सबसे ज्यादा उनमें है जो अपने आप को ऊँची जाति का मानते है। उन्हें अभी बाबा साहेब के कथनों को सुनना पड़ेगा … पढ़ना पड़ेगा। तब जाकर ही वे "भारत रत्न डाॅ. बाबा साहेब भीमराव रामजी अम्बेड़कर जी" को जान पाएंगे समझ पाएंगे। 

जय हिन्द   ।।     जय भारत    ।।    जय भीम   ।। 
- पीताम्बर शम्भू 

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

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