जो काम करने आये थे लगता है वो तो किनारे लग गये होंगे जो ये भी करना बाकी रह गया। स्मृति इरानी के एचआरडी मंत्रालय की ओर से अनुरोध किया जा रहा है कि देशभर में IIT संस्थानों में संस्कृत की पढ़ाई करायी जाये। लेकिन फिर भी ऐसे संस्थान से संस्कृत की पढ़ाई की अपेक्षा रखने की आखिर क्या जरूरत पड़ गई। क्यों आप चाहते हैं कि पठन पाठन में अतिरिक्त अनावश्यक व्यवधान पड़े। एक सीखने वाले विद्यार्थी की यह मर्जी होनी चाहिये कि वह क्या पढ़ना चाहता है, उसको यूं आप बाँध नहीं सकते। आखिर एक अच्छे विद्यार्थी की लगन और इच्छा को सीमित नहीं किया जाना चाहिये।
दूसरी राजनीतिक पार्टियाँ भी इस पर ऐतराज जताने से पीछे नहीं हटना चाहतीं। कुछ मानते हैं कि बीजेपी आज भी आरएसएस के एजेंडे से हटकर कुछ करना ही नहीं चाहती। तो कुछ कहते हैं कि हमें IIT सें पढ़े हुए इंजीनियर चाहियें पूजा-पाठ करने वाले पुजारी नहीं।
आम आदमी पार्टी के मनीष सिसोदिया जी ट्वीट करते हैं कि "हर किसी को यह समझ लेना चाहिए कि संस्कृत ही एकमात्र ऐसी भाषा है जो C++, Java, SOL, Python, Javascript का मुकाबला कर सकती है। एकबार आईआईटी में संस्कृत की पढ़ाई शुरू होने के बाद देश के ऐसे सभी कंप्यूटरों को जो C+, Java, SOL, Python… का इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें राष्ट्रविरोधी घोषित कर देना चाहिए।"
हाँ जी चलो वापस अपने विषय पर आते हैं, तो बात संस्कृत की ही है ना, तो क्यों नहीं आप उसे आर्टस यूनिवर्सिटी और कॉलेज में सही ढ़ंग से चलायें और एक अच्छे विकल्प के तौर पर प्रस्तुत करें। यहाँ सांइस के विषय हैं जनाब, यहाँ क्यों आप संस्कृत को फंसा रहें हैं। आर्टस कॉलेज में रूचि वाले लगनशील छात्र तैयार बैठे हैं जिन्हें संस्कृत में अपना एक भविष्य तैयार करना है। हो सके तो उनको शिक्षक और पठन सामग्री उपलब्ध करायें, उनकी लगन का विस्तार करें ताकि उन्हें देख और भी छात्र संस्कृत की ओर आकर्षित हों। लेकिन ये विषय सांइस का नहीं आर्टस का है। और वैसे भी ९९ फीसदी विद्यार्थी किसी शिक्षण संस्थान में अपना करियर अपना भविष्य बनाने आते हैं। ऐसे खिलवाड़ ना कीजिये, थोड़ा संभलिये, ध्यान से।
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