"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

सवाल आईपीएल का नहीं पानी का है, और संदेश है जल संरक्षण

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जी हाँ, सही बात है! महाराष्ट्र और मुंबई खेल संघों की तरफ से उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौतीपूर्ण याचिकायें सुप्रीम कोर्ट में दी गई थीं कि 30 अप्रैल के बाद भी महाराष्ट्र में ही बाकी बचे मैचों को कराया जाये। लेकिन सूप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं को खारिज कर दिया और अब बाकी मैंच महाराष्ट्र के बाहर होंगे। ऐसा होना जरूरी तो था ही और समय की मांग भी यही है। सभी जानते हैं कि किस तरह महाराष्ट्र बुरी तरह सूखे की चपेट में घिरा हुआ है और ऊपर से ये आईपीएल की वजह से हर मैच में पानी की बर्बादी। 

ये सिर्फ एक आईपीएल और खेल संघों के लिये जवाब नहीं है। यह पूरे समाज को एक जरूरी संदेश है। और ये संदेश है जल संरक्षण का। महाराष्ट्र में रोजाना आये दिन जल से जुडी गंभीर समस्यायें सामने आतीं रहीं हैं। कई जगहों पर टैकर भर के भेजे जाते तो कहीं वही टैकर पहुँचने से पहले लूट भी लिये जाते है, वहीं धारा 144 भी लगानी पड़ जाती है। फिर वहीं से दिल दहला देने वाली खबरें, लडाई-झगडे। कूएँ, तालाब, झील और अन्य जल के स्रोत दिनों दिन सूखते चले गये। सूखे से हर जगह त्राहि त्राहि मची हुई है। तो कोई कहने में लगा है कि आईपीएल मैचों के होने से सूखे की स्थिति पर कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। लेकिन फिर भी हम यह बात मानने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि एक तरफ तो लोग बूंद-बूंद पानी के लिये तरस रहें हैं और दूसरी तरफ आप बहस कर रहें हैं कि मैदान को मैच खेलने लायक बनाना है तो साठ हजार या साठ लाख लीटर पानी पडेगा। ये बहस करना तो साफ बेईमानी है कि आप कितना पानी का नुकसान मैदान पर खर्च कर रहे हो।

वैसे देखा जाये तो सूखा केवल कम बारिश की देन नहीं है, अपितु भूजल के अंधाधुंध दोहन से भी आज सूखे की स्थिति बनी है। साथ ही महाराष्ट्र में काफी बाँध हैं लेकिन पानी उद्योग और राजनीति के चलते अपनी ओर मोड़ दिया जाता है। चीनी और शराब उद्योग भी पानी का खूब दोहन करते रहते हैं, शायद अभी भी जारी हो। बारिश का तो ऐसा ही उतार-चढाव देखने को मिलेगा, ये कोई नई बात नहीं है। लेकिन कुछ सीमा तक अपने आप को सीमित रखने की भी आवश्यकता है, ये नहीं कि अंधाधुंध अन्य सभी जलस्रोतों को जरूरत से अधिक उपयोग में लाकर खाली ही कर दिया जाये। 

सूखे से निपटने के लिये सिर्फ आईपीएल पर सब दोष मढ़ देना भी मूर्खता ही है। बेहतर यह होगा कि कुछ और विकल्प खोजे जायें और निपटने के लिये  सही कार्य विधि का सुचारू रूप से संचालन किया जाये।

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

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