"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

कौआ, हंस, तोता और मोर (कहानी)

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एक जंगल में एक कौआ होता है जो अपने जीवन में काफी खुश रहता था। उसे कुछ भी अलग कोई कल्पना मात्र  की भी चिंता नहीं थी। वह अपने जीवन में पूर्णतया सुखी था खुश था।

लेकिन एक दिन वह एक हँस को देखता है और मन ही मन सोचता है कि, "ये कितना सफेद है, मैं कितना काला हूँ।"
"शायद ये हँस अपने जीवन में मुझसे भी ज्यादा सुखी होगा।"

कौआ अपने मन की बात हँस से जाकर कहता है, यह पूरी बात सुनकर.. हँस कहता है, "मुझे भी पहले ऐसा ही लगता था कि मैं दुनिया का सबसे सुखी पक्षी हूँ.... लेकिन तोते को देखो उसके पास दो रंग हैं और मेरे पास सिर्फ सफेद जो अब बेरंग सा मुझे लगने लगा है। मुझे लगता है तोता सबसे सुखी पक्षी है।"

अब कौआ तोते के पास पहुँचा और पूरी कहानी उसे भी सुनायी। यह सुनकर तोता बोला,"सोचता तो मैं भी यही था पर मैंने जब तक मोर को नहीं देखा था। देखो ना उसके पास कितने रंग हैं और मेरे पार बस दो। शायद मोर सबसे सुखी पक्षी होगा।"

कौआ अब मोर की तलाश में निकल गया.. वह उसे चिड़ियाघर में ढ़ूंढने में सफल रहा। उसने देखा काफी लोग उसे वहाँ देखने आये हुए थे। इसी बीच उससे वार्तालाप करता है, और पूरी कहानी उसके समक्ष रखता है। इस पर मोर कहता है, "देखो मेरी खूबसूरती के कारण मुझे यहाँ कैद करके रखा है और तुम सभी को लगता है कि तुम लोग सुखी नहीं हो। सुखी होने का मतलब सुन्दरता से बिल्कुल नहीं है। तुम जाओ यहाँ से अब मेरी पीडा और मत बढाओ। मुझे अपने वर्तमान में खुश रहने दो।"

यह सुनकर कौआ चल देता है और सोचता है कि...
शायद सब अपनी जगह ठीक है, भगवान ने सबको उनके कार्यानुरूप जो भी रंग रूप दिया है उसकी तुलना अापस में करने से कोई लाभ नहीं है।
प्रत्येक के जीवन में मूल्य है तो सिर्फ उस चीज का जो भगवान ने हर एक को अलग अलग कला फुरसत से सौंपी है।

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

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