चार दशकों से चला आ रहा पूर्व सैनिकों का मुद्दा "वन रैंक वन पेंशन" आज दोपहर मोदी सरकार ने मंजूर कर लिया। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने रक्षा मंत्रालय से सम्मलेन के दौरान सामने आकर ये बातें सार्वजनिक की।
उन्होंने कहा कि इसके लिए सरकार को ८००० करोड़ की धनराशि खर्च करनी पड़ेगी और ये सैनिको के सम्मान के आगे काफी कम है।
रक्षा मंत्री की प्रमुख बातें:-
१. वन रैंक वन पेंशन लागू करने के लिए वर्ष 2013 को आधार वर्ष माना जाएगा।
२. वन रैंक वन पेंशन की नीति एक जुलाई 2014 से लागू होगी।
३. वन रैंक वन पेंशन की बक़ाया राशि चार अर्धवार्षिक किश्तों में दी जाएगी।
४. पूर्व सैनिकों की विधवाओं और युद्ध में मारे गए सैनिकों की विधवाओं को बक़ाया राशि एक मुश्त एक किश्त में दी जाएगी।
५. इस नीति की पांच साल बाद समीक्षा की जाएगी।
६. स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले सैनिकों को इस नीति का फायदा नहीं मिलेगा।
लेकिन ये क्या ?? मंजूर तो हुआ, पर वैसा नहीं जैसा पूर्व सैनिकों ने अपनी मांगें की थी। वे अभी भी असंतुष्ट ही है, और अपना आंदोलन जारी रखे हुए हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि मुख्य दो बातें है, जो बेहद गंभीर है। और उनपर दोबारा विचार करना जरुरी है।
१. पूर्व सैनिकों के नेता मेजर जनरल (रिटायर्ड) सतबीर सिंह ने कहा है कि ऐसा करना ठीक नहीं होगा क्योंकि भारतीय सेना में 40 प्रतिशत सैनिक पहले ही सेना छोड़ देते हैं। ऐसे में उनको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
२. पूर्व सैनिक इस बात से भी नाखुश हैं की नीति की समीक्षा पांच साल बाद की जाएगी। जबकि एक या दो साल का अंतराल भी काफी है।
'वन रैंक वन पेंशन' की मांग के साथ पूर्व सैनिक बीते लगभग ढाई महीनों से दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे हैं। पूर्व सैनिक अभी भी आस लगाये तब तक जंतर-मंतर पर आंदोलन में बैठे रहेंगे जब तक सरकार उनकी सारी बातों को मंजूर नहीं कर लेती।
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