हमारा आज का समाज बेहद तेज व अत्याधुनिक तो हुआ है, पर इसी तेजी ने हम सब लोगों में अनेकों बुराइयां, गलत सोच, अहम्, अहंकार और ना जाने क्या क्या भर दिया। जहाँ श्री राम के युग वाले रावण के दस सिर थे, लेकिन अब तो लगता है कि इस युग में तो रावण के सिरों की गिनती ही नहीं की जा सकती, हर कोई अपने अंदर एक नए किस्म का रावण लिए यहाँ-वहाँ घूम रहा है। क्योंकि आज का रावण पहले वाले कि अपेक्षा बेहद चालक हो गया है तो वह अब छुप के रहता है पर नुकसान बेहद गंभीर कर दिखता है। क्योंकि कितने रावण हम लोगों के बीच रह कर भी पहले के रावण से भी बदतर होने का प्रमाण दे रहे हैं और हमारे समाज को हर अलग दिन कलंकित कर रहे हैं सभी जानते हैं।
कुछ लोग दशहरा/विजयदशमी आते ही अक्सर पूछते फिरते हैं कि रावण कौन था, कुछ पता भी है? तो उनके लिए बता दूँ कि रावण दरअसल ऋषि विशारवा और कैकसी का पुत्र था। रावण एक अति बुद्धिमान ब्राह्मण, विद्वान, रूपवान, तेजस्वी, प्रतापी, शिव भक्त था। साथ ही उसको संगीत का भी ज्ञान था, उसने वीणा जैसे वाद्य यंत्र का अविष्कार किया और माँ सरस्वती को वो भेंट किया।
लेकिन इतना सब कुछ उसके पास होने के बाद भी उसको एक गलत सोच, अधर्म, असत्य व अनेकों बुराइयों का प्रतीक माना जाता है क्योंकि उसमें अधर्म, अहम् और अहंकार ने घर कर लिया था। इसी वजह से आज तक रावण उसी कारण से बुराई, गलत व अधर्म का प्रतीक माना जाता है।
और हम भी मात्र रावण रूपी पुतला हर साल फूँक कर दशहरा मना लेते हैं। लेकिन कभी रावण रूपी विचारों पर, रावण रूपी बुराईयों पर उसके जैसे अहंकार पर कभी विजय पा लेने का कभी प्रयास भी किया हो तो, समझ सकते हैं कि अभी भी हम लोगों का पथ भ्रष्ट नहीं हुआ है। अभी भी समय रहते हमारे निकट भविष्य की बागडौर संभल सकती है। हममें, आपमें, सभी में, चाहे वह कोई नेता हो, पंडित/ब्राह्मण, या किसी और धर्म का ही क्यों ना हो.. हर एक में रावण मौजूद है जिसको नष्ट करना या मारना बेहद जरूरी है।
यकीन कीजिये उस दौर के रावण और आज के दौर के रावण की तुलना भी नहीं की जा सकती। यहाँ हर शक्ल में रावण छिपा घूमता है। कैसे पहचाने कि रावण आखिर कहाँ नहीं है?
लेकिन इतना सब कुछ उसके पास होने के बाद भी उसको एक गलत सोच, अधर्म, असत्य व अनेकों बुराइयों का प्रतीक माना जाता है क्योंकि उसमें अधर्म, अहम् और अहंकार ने घर कर लिया था। इसी वजह से आज तक रावण उसी कारण से बुराई, गलत व अधर्म का प्रतीक माना जाता है।
और हम भी मात्र रावण रूपी पुतला हर साल फूँक कर दशहरा मना लेते हैं। लेकिन कभी रावण रूपी विचारों पर, रावण रूपी बुराईयों पर उसके जैसे अहंकार पर कभी विजय पा लेने का कभी प्रयास भी किया हो तो, समझ सकते हैं कि अभी भी हम लोगों का पथ भ्रष्ट नहीं हुआ है। अभी भी समय रहते हमारे निकट भविष्य की बागडौर संभल सकती है। हममें, आपमें, सभी में, चाहे वह कोई नेता हो, पंडित/ब्राह्मण, या किसी और धर्म का ही क्यों ना हो.. हर एक में रावण मौजूद है जिसको नष्ट करना या मारना बेहद जरूरी है।
यकीन कीजिये उस दौर के रावण और आज के दौर के रावण की तुलना भी नहीं की जा सकती। यहाँ हर शक्ल में रावण छिपा घूमता है। कैसे पहचाने कि रावण आखिर कहाँ नहीं है?
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