महात्मा गांधी को जाने और समझे बिना हम लोग क्या-क्या कहने में पीछे नहीं हटते। लोग उन्हें सांप्रदायिक, मनुवादी, अय्याश, अंग्रेजों का चापलूस और भी बहुत कुछ कहते पाए जाते हैं, मेरे अंदर भी ऐसा ही जहर दिन प्रतिदिन बढ़ता रहा। ये सच है कि मैं और मुझ जैसे लाखों-करोडो लोग ठीक से समझ नहीं पाए कि आखिर ये गांधी महात्मा क्यों हैं? कॉपी, किताबों, रूपये के नोटों, अख़बारों या जो भी कहीं उनकी फोटो मिलती मैं उसपर कलाकारी करने से बाज़ नहीं आता। कहने का अर्थ है कि हम लोगों में इतना ज़हर भरा है कि हम अपनी मर्ज़ी के अनुसार महात्मा गांधी को अपमानित करने के अलग अलग तरीके खोजने लगते है, जो जैसा बन पड़े। लेकिन जब से कुछ समझ बढ़ी, महात्मा गांधी को पढना और समझना शुरू किया मैं जान सका कि किस कदर मैंने अपने दृष्टिकोण को समाज के अधूरे ज्ञान व द्वेष के साथ मिलाकर बेहद शर्मनाक तरीके से अपनाये हुए थे। यहाँ मेरे कहने का मतलब ये नहीं है कि मैं आज गांधीवादी हो गया हूँ और मुझे महात्मा गांधी कि कोई कमी दिखाई नहीं देती। लेकिन फिर भी कल और आज में जो मुझ में बदलाव आया वो ये है कि अब मैं उनको गालियाँ आँखे बंद करके नहीं देता, बल्कि सोच समझ कर आँखें खोल कर सही और निष्पक्ष आलोचना करता हूँ जहाँ की जानी चाहिए।
महात्मा गांधी एक महात्मा होते हुए भी हम और आप की तरह एक इंसान ही थे। जो दस कम सही तो चार गलत भी कर सकते हैं, कोई भी अपने आप में सम्पूर्ण नहीं है और कभी हो भी नहीं सकता। कई बार लोगों को आपस में लड़वाने और मनमुटाव या राजनीतिक लाभ पाने के लिए उनके सामने बाबा साहेब आंबेडकर के विचारों को रख देते हैं। तो कोई लेखक या वक्ता उन्हें उनके किसे विचार के कारण मनुवादी घोषित कर देता है।
लेकिन इन सब से अलग मुझे सबसे अच्छी बात महात्मा गांधी की ये लगी, जो उन्होंने अपने बारे में कहा कि, "मैं हमेशा लगातार सीखता रहता हूँ, इसलिए एक विषय पर मेरी आखिरी बात क्या है इसे याद रखो ना कि ये कि मेरी पहली बात क्या थी?" अब ज़हर उगलने वाले आपको हर जगह मिलेंगे, महात्मा गांधी के बारे में थोडा सा भी ना जानने वाले भी उनको गन्दी-गन्दी गलियां देते दिखते हैं।
लेकिन इन सब से अलग मुझे सबसे अच्छी बात महात्मा गांधी की ये लगी, जो उन्होंने अपने बारे में कहा कि, "मैं हमेशा लगातार सीखता रहता हूँ, इसलिए एक विषय पर मेरी आखिरी बात क्या है इसे याद रखो ना कि ये कि मेरी पहली बात क्या थी?" अब ज़हर उगलने वाले आपको हर जगह मिलेंगे, महात्मा गांधी के बारे में थोडा सा भी ना जानने वाले भी उनको गन्दी-गन्दी गलियां देते दिखते हैं।
आज की आधुनिक समाज की पीढ़ी फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप्प और तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर आये संदेशों को ही अपने ज्ञान का अंतिम स्रोत मानकर बैठ जाती है और उसके परिणाम में इन जैसे कई महात्माओं को गाली बकती फिरती हैं। आज जो जरुरत है तो इस बात की कि नई पीढ़ियों तक सही बातें पहुंचाई जाए ताकि वे निष्पक्ष होकर अपना नजरिया बना सकें।
अगर यकीन ना आये तो आप लोग भी प्रयास करके देखिये, जहाँ आपका रोज का उठाना बैठना हो वहां केवल एक वाक्य में प्रश्न पूछना कि,
" महात्मा गांधी के बारे में आपका क्या विचार है?"
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