"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

महात्मा गांधी के लिये हमारे आधुनिक विचार

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महात्मा गाँधी बचपन में मेरे दिल और दिमाग पर छाए रहते थे। फिर ना जाने कैसे कैसे समाज में घुलने मिलने के साथ ही मेरे पूरे दर्शन, ज्ञान और विचार कब गांधी के खिलाफ बोलने लगे ये मैं खुद भी नहीं जान पाया। जाहिर है ये सब मेरे अंदर आने वाले द्वेष का कारण समाज में व्याप्त वे बुराइयाँ ही होंगी, जो केवल एक दूसरे में केवल कमियों की तलाश करने में माहिर होतीं हैं और उनको अच्छाईयां दिखती ही नहीं। यदि दिखती भी हों तो वे नज़रंदाज़ कर देते हैं, क्योंकि गांधी के तर्क में तवज्जो तो केवल कमियों और बुराइयों को ही मिलती हैं। 

महात्मा गांधी को जाने और समझे बिना हम लोग क्या-क्या कहने में पीछे नहीं हटते। लोग उन्हें सांप्रदायिक, मनुवादी, अय्याश, अंग्रेजों का चापलूस और भी बहुत कुछ कहते पाए जाते हैं, मेरे अंदर भी ऐसा ही जहर दिन प्रतिदिन बढ़ता रहा। ये सच है कि मैं और मुझ जैसे लाखों-करोडो लोग ठीक से समझ नहीं पाए कि आखिर ये गांधी महात्मा क्यों हैं? कॉपी, किताबों, रूपये के नोटों, अख़बारों या जो भी कहीं उनकी फोटो मिलती मैं उसपर कलाकारी करने से बाज़ नहीं आता। कहने का अर्थ है कि हम लोगों में इतना ज़हर भरा है कि हम अपनी मर्ज़ी के अनुसार महात्मा गांधी को अपमानित करने के अलग अलग तरीके खोजने लगते है, जो जैसा बन पड़े लेकिन जब से कुछ समझ बढ़ी, महात्मा गांधी को पढना और समझना शुरू किया मैं जान सका कि किस कदर मैंने अपने दृष्टिकोण को समाज के अधूरे ज्ञान व द्वेष के साथ मिलाकर बेहद शर्मनाक तरीके से अपनाये हुए थे यहाँ मेरे कहने का मतलब ये नहीं है कि मैं आज गांधीवादी हो गया हूँ और मुझे महात्मा गांधी कि कोई कमी दिखाई नहीं देती। लेकिन फिर भी कल और आज में जो मुझ में बदलाव आया वो ये है कि अब मैं उनको गालियाँ आँखे बंद करके नहीं देता, बल्कि सोच समझ कर आँखें खोल कर सही और निष्पक्ष आलोचना करता हूँ जहाँ की जानी चाहिए। 

महात्मा गांधी एक महात्मा होते हुए भी हम और आप की तरह एक इंसान ही थे। जो दस कम सही तो चार गलत भी कर सकते हैं, कोई भी अपने आप में सम्पूर्ण नहीं है और कभी हो भी नहीं सकता। कई बार लोगों को आपस में लड़वाने और मनमुटाव या राजनीतिक लाभ पाने के लिए उनके सामने बाबा साहेब आंबेडकर के विचारों को रख देते हैं। तो कोई लेखक या वक्ता उन्हें उनके किसे विचार के कारण मनुवादी घोषित कर देता है
लेकिन इन सब से अलग मुझे सबसे अच्छी बात महात्मा गांधी की ये लगी, जो उन्होंने अपने बारे में कहा कि, "मैं हमेशा लगातार सीखता रहता हूँ, इसलिए एक विषय पर मेरी आखिरी बात क्या है इसे याद रखो ना कि ये कि मेरी पहली बात क्या थी?" 
अब ज़हर उगलने वाले आपको हर जगह मिलेंगे, महात्मा गांधी के बारे में थोडा सा भी ना जानने वाले भी उनको गन्दी-गन्दी गलियां देते दिखते हैं। 

आज की आधुनिक समाज की पीढ़ी फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप्प और तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर आये संदेशों को ही अपने ज्ञान का अंतिम स्रोत मानकर बैठ जाती है और उसके परिणाम में इन जैसे कई महात्माओं को गाली बकती फिरती हैं। आज जो जरुरत है तो इस बात की कि नई पीढ़ियों तक सही बातें पहुंचाई जाए ताकि वे निष्पक्ष होकर अपना नजरिया बना सकें।

अगर यकीन ना आये तो आप लोग भी प्रयास करके देखिये, जहाँ आपका रोज का उठाना बैठना हो वहां केवल एक वाक्य में प्रश्न पूछना कि,
" महात्मा गांधी के बारे में आपका क्या विचार है?" 

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

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