क्रिसमस का त्योहार शुरू के मसीही नहीं मनाते थे
झूठे धर्म एक और तरीके से हमारी उपासना में ज़हर घोल सकते हैं। वह है, जाने-माने त्योहारों से। अब क्रिसमस को ही लीजिए। कहा जाता है कि क्रिसमस, यीशु मसीह के जन्मदिन की खुशी में मनाया जाता है और तकरीबन हर ईसाई धर्म इसे मनाता है। मगर इसका कोई सबूत नहीं कि पहली सदी में यीशु के चेलों ने क्रिसमस मनाया था। गूढ़ बातों की पवित्र शुरूआत (अँग्रेज़ी) किताब कहती है: “मसीह ठीक कब पैदा हुआ, यह तारीख उसकी मौत के बाद दो सौ साल तक, न तो किसी को याद रही न ही किसी को यह जानने में ज़रा भी दिलचस्पी थी।”
अगर यीशु के चेलों को उसके जन्म की सही-सही तारीख मालूम होती, तब भी वे उसका जन्मदिन नहीं मनाते। क्यों? क्योंकि जैसे द वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया कहती है, शुरू के मसीही “मानते थे कि जन्मदिन चाहे किसी का भी हो, इसे मनाने का रिवाज़ झूठे धर्मों से निकला है।” बाइबल में सिर्फ ऐसे दो राजाओं के जन्मदिन का ज़िक्र है जो झूठे धर्म को मानते थे। (उत्पत्ति 40:20; मरकुस 6:21) उस ज़माने में राजाओं के अलावा, झूठे देवी-देवताओं के सम्मान में भी उनका जन्मदिन मनाया जाता था। मिसाल के लिए, रोमी लोग मई 24 को डायना नाम की देवी का जन्मदिन मनाते थे। और अगले दिन वे सूर्य देवता, अपोलो का जन्मदिन मनाते थे। तो यह बिलकुल साफ है कि यीशु के चेलों के ज़माने में जन्मदिन मनाने का रिवाज़ झूठे धर्मों से जुड़ा था, न कि सच्ची मसीहियत से।
पहली सदी में यीशु का जन्मदिन न मनाने की एक और वजह थी। उसके चेले यह ज़रूर जानते होंगे कि जन्मदिन मनाने की रीत का अंधविश्वास के साथ नाता है। मिसाल के लिए, पुराने ज़माने के कई यूनानियों और रोमियों का यह अंधविश्वास था कि हर इंसान के जन्म के वक्त एक आत्मा हाज़िर होती है और फिर वह ज़िंदगी-भर उस इंसान की हिफाज़त करती है। जन्मदिन की कथा (अँग्रेज़ी) किताब कहती है कि “इस आत्मा का उस देवता के साथ पहले से एक रहस्यमयी रिश्ता होता है, जिसके जन्मदिन पर वह शख्स पैदा हुआ था।” यहोवा ऐसी किसी भी रस्म से हरगिज़ खुश नहीं होता, जो मनायी तो यीशु के नाम से जाती है मगर असल में उसका ताल्लुक अंधविश्वास से है। (यशायाह 65:11, 12) तो फिर लोग क्रिसमस क्यों मनाने लगे?
क्रिसमस की शुरूआत
यीशु के पैदा होने और मरने के सैकड़ों साल बाद जाकर कहीं लोगों ने दिसंबर 25 को उसका जन्मदिन मनाना शुरू किया था। मगर इस तारीख को यीशु का जन्म नहीं हुआ था, क्योंकि सबूत दिखाते हैं कि वह अक्टूबर महीने में पैदा हुआ था, दिसंबर में नहीं।* तो फिर, उसका जन्मदिन मनाने के लिए दिसंबर 25 की तारीख क्यों चुनी गयी? दरअसल ईसाई होने का दावा करनेवाले कुछ लोगों ने बाद में जाकर इस दिन को चुना था। क्योंकि इस दिन “रोम के गैर-ईसाई लोग ‘अजेय सूर्य का जन्मदिन’ मनाते थे,” और ईसाई “चाहते थे कि मसीह के जन्म का जश्न भी इसी दिन मनाया जाए।” (द न्यू इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका) सर्दियों के मौसम में जब सूरज की गरमी कम हो जाती, तो गैर-ईसाई इस इरादे से पूजा-पाठ करते और रीति-रस्म मनाते थे कि सूरज अपनी लंबी यात्रा से लौट आए और दोबारा उन्हें गरमी और रोशनी दे। उनका मानना था कि दिसंबर 25 को सूरज लौटना शुरू करता है। इस त्योहार और इसकी रस्मों को ईसाई धर्म-गुरुओं ने अपने धर्म में मिला लिया और इसे “ईसाइयों का त्योहार” नाम दिया ताकि गैर-ईसाइयों को अपने धर्म की तरफ खींच सकें।
बीते ज़माने में भी लोग यह सच्चाई जानते थे कि क्रिसमस गैर-ईसाई धर्मों से निकला है और बाइबल में इसका कहीं कोई ज़िक्र नहीं है। इसी वजह से, 17वीं सदी के दौरान इंग्लैंड में और अमरीका के ऐसे कुछ इलाकों में जो इंग्लैंड के अधीन थे, इस त्योहार पर रोक लगा दी गयी। वहाँ क्रिसमस के दिन अगर कोई काम पर जाने के बजाय घर पर रहता, तो उसे जुर्माना भरना पड़ता था। मगर कुछ ही समय बाद, पुराने रस्मो-रिवाज़ लौट आए और उनके साथ कुछ नए रिवाज़ भी जोड़ दिए गए। इस तरह एक बार फिर क्रिसमस बड़ा त्योहार बन गया और आज भी इसे कई देशों में धूमधाम से मनाया जाता है। मगर जो लोग परमेश्वर को खुश करना चाहते हैं वे क्रिसमस नहीं मनाते, न ही वे ऐसा कोई और त्योहार मनाते हैं जिसकी शुरूआत झूठे धर्मों से हुई है।
बाइबल यह सिखाती है...
- सच्ची उपासना में मूर्तियों और पुरखों की पूजा के लिए कोई जगह नहीं है।—निर्गमन 20:4, 5; व्यवस्थाविवरण 18:10-12.
- जो त्योहार झूठे धर्मों से निकले हैं, उनमें हिस्सा लेना गलत है।—इफिसियों 5:10.
- सच्चे मसीहियों को अपने विश्वास के बारे में दूसरों को बताते वक्त समझदारी से काम लेना चाहिए।—कुलुस्सियों 4:6.
Source:- www.jw.org
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