"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

रोशनी का त्योहार - दीपावली

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हमारे भारत देश में दीपावली हमेशा से ही एक बड़े धूम धाम से मनाने वाले त्योहारों में से एक रहा है। इस दिन के आने से पहले ही लोग घरों में सफाई, साज सजावट, रंग-रोगन करने-कराने लगते हैं। गरीब हो या अमीर सभी अपने घर को इस दिन साफ़ दिखाई देने में यकीन रखते हैं। माता महालक्ष्मी व श्री राम का आगमन को ध्यान में रखते हुए सभी लोग घर को प्रकाशमान, सुगन्धित व स्वच्छ बनाये रखते हैं। 

जब लोग कम पढ़े लिखे व थोड़े सहनशील हुआ करते थे, तब दीपावली के त्योहार को रोशनी, दीपों व मिठाइयों के आदान प्रदान के साथ मानते थे। साथ ही पर्यावरण की शुद्धता का भी ध्यान रखते थे, यह बताने का विषय इसलिए भी जरुरी है क्योंकि दीपों और रोशनी फ़ैलाने से पर्यावरण को नुकसान नहीं और न ही हवा में जहर घुलने का खतरा बनता है। आज़ादी के बाद हमने इतनी तेज़ी से अपनी संस्कृति में बदलाव किया कि हमारी भावनाशीलता में भी कमी आने लगी है। हम लोग भूल जाते हैं कि सही क्या होना है और गलत क्या? हमारे पढ़े लिखे होने के साथ ही हमारी आधुनिकता को हवा लगी हुई है। हम कुछ भी करें सब हट या होड़ में ही करते है, और सब करने का नतीजा ये है कि हम अनजाने में अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारते हैं। 

हम भूल गए हैं दीपावली की शुद्धता, हम भूल गयें है दीपों का मतलब, हम भूल गयें हैं बैठ कर पूजा पाठ करने का लाभ। अब याद है तो कृत्रिम चकाचौंध वाली रोशनी और पटखों के धमाके।  इन दो चीजों ने हमारे दीपावली के महत्व को खतरनाक तरीके से गम कर दिया, जिसका हमें पता ही नहीं चला। हम सभी जानते हैं कि पटाखे बिना बारूद के बनाये नहीं जा सकते। बारूद को कागज की तह में लपेटकर पटाखे बनाये जाते हैं, जब इसमें आग लगायी जाती है तो कान-फोड़ देने जितनी आवाज आती है और जहरीले धुएं हवा में मिलने लगते हैं। चूँकि हम लोगों ने अपने आप को अब आधुनिक मान लिया है तो ये सब संस्कृति में जोड़ देना पड़ेगा और हवा को यूंही प्रदूषित करते रहना पड़ेगा। इस कदर हम पटाखों के दीवाने हैं कि एक हाथ में गोला-बारूद लेकर ये सोचते हैं कि आज पड़ोसियों में सबको पीछे छोड़ देना है, बस फिर ठायं-ठायं, भम-भम।  बारूदी बादल वातावरण को अपने कब्जे में लेकर राज करने लगते हैं। पटाखों से खेलते हुए हम ये भूल जाते हैं कि ये धुआं हमारे फेफड़ों को कितना नुकसान दे रहा होता है। 

अफ़सोस इस बात का भी है कि हमारे बड़े लोग, बुजुर्ग, नेता, शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता व आधुनिक देवता टी.वी. ये जागरूक करना व समझाना जरुरी नहीं समझते।  जबकि वे ही खुद बढ़-चढ़ के इसमें हिस्सा लेते हुए नज़र आते हैं। यदि एक जगह बैठकर, चिंतन करकर दीपावली के सही अर्थों को टटोला जाये तो हमारे इस त्योहार का सार्थक व सही अर्थ सामने आएगा, जिसमें शुद्धता, स्वच्छता, मित्रता और रोशनी ही रोशनी है.....जिससे हमको अंधकार दूर करना है। 


"आप सभी को व आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।"
। शुभ दीपावली । 

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

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