"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

आधुनिकता की अंधी दौड़...

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आज सम्पूर्ण भारत में पाश्चात्य संस्कृति अपनी जड़े मजबुत कर रही है। शहरों में ही नहीं, वरन गांवों, कस्बों, ढाणियों, गली-मोहल्‍लों में इसका रंग देखा जा सकता है। जिस तेज गति से पाश्चात्य संस्कृति का चलन बढ़ रहा है, उससे लगता है कि वह समय दूर नहीं, जब हम पाश्चात्य संस्‍कृति के गुलाम बन जायेंगे और अपनी पवित्र पावन भारतीय संस्कृति, भारतीय परम्परा सम्पूर्ण रूप से विलुप्त हो जायेगी, गुमनामी के अंधेरों में खो जायेगी।

पहले जहां घरों में पानी के मटके के साथ वास करते देवी-देवताओं का स्‍थान होता था और वह घर का सबसे पवित्र कोना होता था, वहीं आज फ्लैट के कोने-कोने में इष्ट देव, आधुनिक भगवान ‘श्रीमद टीवी देवता’ अपना आसन जमा बैठे हैं। सुबह से शाम तक आंखे फाड़-फाड़ कर टीवी देवता को ही देखते रहना व उनकी भक्ति में लीन रहना ही जैसे इन्सान का धर्म हो गया है। आज टीवी देवता व उनके सहयोगी सिनेमा देव ने हमें मनोरंजन के नाम पर क्या दिया है! मारधाड़, खुन खराबा, पर फिल्माए गए दृश्य मनोरंजन के नाम पर मानवीय गुणों, भारतीय संस्कृति व कला का गला घोट रहे हैं।

आज टीवी देवता व उनके सहयोगी सिनेमा देव ने युवा वर्ग में यह स्थिति पैदा कर दी कि फिल्मों के हीरो, हिरोइन व अन्य कलाकारों की नकल करना भी एक फैशन बन गया है। इस फैशन के चलते किसी को ये सोचने का भी वक्त नही हैं कि ये उनके लिये हितकर है भी या नहीं। इसी के चलते आज के युवा वर्ग की स्थिति भयानक व विषम हो गई है। फैशन के नाम पर जिंस, लुजर शर्ट, स्‍पोर्ट्स शू, मुंह में 120 का पान, जेब में गुटके का पाउच, दो उंगलियों के बीच जलती सिगरेट और हीरो होंडा या स्कूटर मिल गया, तो मानो सारे जहां का राज्य मिल गया, ऐसा मानने वाली ये पीढी आज यत्र-तत्र-सर्वत्र (यहां, वहां, सब जगह) दिखाई पड़ रही है।

माना की आधुनिक होना आज के दौर की मांग हैं और शायद अनिवार्यता भी है, लेकिन यह कहना भी गलत ना होगा कि यह एक तरह का फैशन है। आज हर शख्स आधुनिक व मॉर्डन बनने के लिये हर तरह की कोशिश कर रहा है, मगर फैशन व आधुनिकता का वास्तविक अर्थ जानने वालों की संख्या न के बराबर होगी, और है भी, तो उसे उंगलियों पर गिना जा सकता है। क्या आधुनिकता हमारे कपड़ों, भाषा, हेयर स्टाइल एवं बाहरी व्यक्तित्व से ही संबंध रखती है? शायद नही। 

आधुनिकता तो एक सोच है, एक विचार है, जो व्यक्ति को इस दुनिया के प्रति अधिक जागरूक व मानवीय दृष्टिकोण से जीने का सही मार्ग दिखलाती है। क्या टाइट जींस व शार्ट पहनना ही फैशन हैं? क्या आपने ये कभी सोचा है कि ये आप पर जंच भी रही है या नहीं? बस सोचा कि लेटेस्ट फैशन है और पहन लिया। चलो मान भी लिया कि आपका शरीर इस पहनावे के लायक है और आप पर यह पहनावा अच्छा भी लग रहा है, परन्तु आपने ये भी कभी सोचा कि आपको किस अवसर पर किस प्रकार का परिधान पहनना है।

सही मायने में सही समय पर, सही मौके पर अपने व्यक्तित्व को आकर्षक ड्रेस से सजाना, सही भाषा का प्रयोग तथा समय पर सोच-समझकर फैसले लेने की क्षमता, समझदारी और आत्मविश्वास का मिला-जुला रूप ही आधुनिकता है।

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

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