"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

ये पाक नहीं नापाक है

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उरी में हमारे सेना के प्रशासनिक ठिकाने पर आतंकी हमले से एक बार फिर पाकिस्तान के नापाक इरादे साफ़ होते हैं। हमारे सत्रह जवान शहीद हो गए और करीब तीस से अधिक घायल भी। इन नापाक आतंकियों ने हमले का वक़्त भी वो चुना जब हमारे जवान सो रहे थे और सामने से आकर लड़ना तो दूर ग्रेनेड फेंक कर हमला किया गया। कुछ दिनों पहले पूंछ के शिविर में भी किया, पर कोई नुकसान नहीं हुआ था, लेकिन अब तो बस बहुत हुआ। आखिर कबतक यह सब चलेगा? हमारे प्रधानमंत्री जी, गृह मंत्री और रक्षा मंत्री कोई ठोस कदम उठाने में इतनी देरी क्यों कर रहे हैं। क्यों नहीं पाकिस्तान से सीधी बात की जाये ? क्यों नहीं पाकिस्तानी नागरिकों को भी भारत से रवाना हो जाने को कहा जाये। क्यों नहीं पाकिस्तान से सरे करार ख़त्म कर दिए जाएं। 

यदि देखा जाये और गणना की जाये तो 1971 के पाकिस्तान युद्ध के बाद से आज तक जितने सैनिक बिना घोषित युद्ध शहीद हुए उतने तो एक बार युद्ध हो जाने के बाद शहीद नहीं होते। दूसरी ओर मनोबल और आत्मबल पर भी ठेस पहुँचती है। पाकिस्तान तो आतंकवादियों को खुला समर्थन देता आया है और वो देता रहेगा चाहे वो खुलकर ना बोले। लेकिन ये बात तो जग जाहिर ही है, फिर भी क्यों हम उसकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाये रखते हैं। राष्ट्र संघ में भी उसे और कोई मुद्दा नहीं मिलता, बस मुँह खोल के कश्मीर का राग अलापने शुरू कर देता है। बस बहुत हो गया, अब देश को कठोर निर्णय लेना होगा। 

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