"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

क्या रे ज़िंदगी क्या तेरी है कहानी

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क्या रे ज़िंदगी
क्या तेरी है कहानी,
कभी आती है समझ में
तो कभी नहीं

हो कुछ भी चाहो तो
मिलता नहीं है वो,
गर तू चाहे तो
ये भी हो....  वो भी हो
अरे जो भी होता हो,
होता रहे अब वो..!!!

अब कुछ भी तो ना अपना है
जो जाना है वो सपना है
जीना है या मरना है
आखिर कब तक, 
 आखिर कब तक !!

हर एक सांस में,
जीने की तम्मना है
कुछ भी न चाहूँ तो 
बस मरना ही मरना है

कहाँ है हर ख़ुशी
फैला तो ये गम है 
यहाँ हर भीड़ में भी 
खड़े अकेले ही हम हैं,

कुछ हो बात अलग 
गर हो संग तुम 
बिन हर चीज़ के 
मैं पा लूंगा सब कुछ 

अरे मरकर भी जीऊंगा 
संग तुम होंगे मेरे तो
और 
जीकर भी न जियूँ मैं 
गर तुम ना मिले...... 

अाोह क्या रे ज़िन्दगी 
अब तू ही बता 
क्या है ये आखिर 
क्या तेरी है कहानी 

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

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