"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

सच है क्या दुनिया में .. रहता हर कोई अन्जान है

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सच है क्या दुनिया में

.. रहता हर कोई अन्जान है..
सोचता कुछ है करता कुछ है..
..क्या अजीब हर इन्सान है,

पूछूं तो पूछूं.. मैं हर बार यही..
पर आखिर कहाँ ये भगवान है,
इन्सान बना.. है गया कहाँ ये.. 
जल्दी आ मुझे तुझसे कुछ काम है,

आया नहीं नजर ..तो यही समझूंगा..
के तू तो है ही...
तेरा नाम तुझसे भी बदनाम है। 

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मैं, पीताम्बर शम्भू, आप सभी के समक्ष अपने लेख व विचारों को पेश करते हुए… हाल-फिलहाल के हालातों का ब्यौरा रखने की भी कोशिश कर रहा हूँ। अगर पसंद आये तो जरूर पढियेगा। . . धन्यवाद…।।

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