प्रधानमंत्री मोदी जी की डिग्री पर उठा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। डीयू की तरफ से डिग्री को सही ठहराये जाने के बाद भी आम आदमी पार्टी यह मानने को तैयार नहीं है कि डिग्री वाकई में असली है। कुछ सवाल अभी भी बाकी हैं:-
- उस समय के अभ्यार्थियों की मार्कशीट पर नाम हाथ से लिखे हुए हैं। और बीजेपी की ओर से जारी मार्कशीट में हाथ से लिखे नहीं हैं।
- दूसरी ओर मोदी जी की डिग्री और मार्कशीट में उनके नामों को लेकर भी बदलाव पाया गया। एक जगह लिखा है "नरेंद्र कुमार दामोदरदास मोदी" तो दूसरी जगह "नरेंद्र दामोदरदास मोदी"। यह कोई माइनर मिस्टेक नहीं कही जा सकती। यूनिवर्सिटी ऐसे संबंधित मामलो पर गौर करती है।
- डिग्री में दिल्ली यूनिवर्सिटी के लोगो में भी अंतर पाया गया।
- मोदी जी की मार्कशीट कम्प्यूटर जनरेटिड है। क्या उस समय तक दिल्ली विश्वविद्यालय में कम्प्यूटर लग गये थे क्या?
- अगर हाँ तो अधुनिक इस्तेमाल होने वाले फोन्टस उस समय कैसे आये?
- अब एक तरफ डीयू ने यह कहा है कि वह ३०-४० वर्ष पुराने रिकार्डस नहीं रखता लेकिन फिर उसने यह दावा कैसे किया कि उन्होंने डिग्री का सही मिलान कर लिया है, उसमें सब ठीक है।
चलो सब ठीक है। एक बार को मान लेते हैं मोदी जी के दस्तावेज झूठे हैं या एक बार को यह मान लेते हैं कि सब दस्तावेज ठीक हैं। मगर इन सब से मिलने क्या वाला है। क्या देश के हित में कोई रोचक भविष्य की खोज होने जा रही है या कुछ कोई मिल गया का जादू मिल जायेगा।
बीए की डिग्री तो कम से कम असली मान लो आखिर डीयू भी कह रही है। मैं कहता हूँ कौन थर्ड डिवीजन की फर्जी डिग्री बनवायेगा, समझा करो। जबकि इन सब बातों से कोई कुछ मिलने नहीं वाला है।
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