आज रवीश जी को प्राइम टाइम पर सुना, सुनकर अच्छा लगा कि हाँ अभी भी कोई पत्रकार है जो सच दिखाने, बताने और सुनाने की हिम्मत रखता है। सभी पत्रकार एक से नहीं होते.. कुछ सहनशील और सदैव देशहित के प्रति अपना कर्तव्य निभाते हैं और कुछ बस सिर्फ जनता को आकर्शित करने मात्र को अपना कर्तव्य बना बैठे हैं।
बहुत से चैनलस सिर्फ मजबूत टीआरपी के लिए ही विषय ढूंढते नजर आते है... उन सभी को एक अलग तौर पर जबरदस्त हमला किया है रवीश जी ने। वैसे रविश जी का कोई ख़ास मतलब पत्रकारों पर सवाल उठाना नहीं था, वे तो बस पत्रकारिता को बचने का प्रयास करते दिखाई दिए। साफ़ तौर पर पत्रकारिता एक गलत ढंग से पेश की जाने लगी है, जिनमे रविश जी खुद भी शामिल हो सकते है, वो इंकार नहीं करते। लेकिन आने वाले समय को देखते हुए भारत की जनता का एक सफल प्रतिनिधि बनना है। वैसे तो सही व सच्चाई को उजागर करना पत्रकारिता की एक महत्वपूर्ण विशेषता रही है पर आजकल खबर जल्दी दिखने की होड़ में न जाने खबर में सच्चाई को क्यों नजरअंदाज किया जाने लगा है एक महत्वपूर्ण विषय है।
मेरे यहाँ लिखने का विषय भी यही है कि किस तरह एक गरीब परिवार से जेएनयू में अपनी मेहनत और लगन से पढ़ने आये कन्हैया को पलभर में ही देशद्रोही साबित कर दिया गया। टीवी चैनेलों और हम लोगों ने मिलकर जो एक दम से निष्कर्ष निकाला कि कन्हैया देशद्रोही है। सिर्फ इस आधार पर कि उसने जो कैंपस में नारे लगाये व लगवाये वे नारे देशद्रोही नारे भारत के खिलाफ थे, जिसका सबूत सिर्फ वीडियो के तौर पर ही सामने आया। और वीडियो इतने जोर शोर के साथ टीवी चैनेलों ने दिखाना शुरू किया कि लोगों में आक्रोश पैदा हो गया। बाद में पता लगा वीडियो तो फर्जी हो सकता है..... कुछ और भी वीडियो सामने आये जिससे की पता लगा कि पुराने दिखाये गये वीडियो कांट-छांट की गयी होगी, तो क्या वो लोग अपने आप को माफ कर पायेंगे जिन्होंने एक निर्दोष को मुजरिम/देशद्रोही बना डाला। साथ ही एक जेएनयू के साधारण छात्र ने पुराना कन्हैया का असली फोटो शेयर किया जिसमें कोई आपत्तिजनक बात नहीं है, जबकि सभी बातें वायरल होने से पहले जो फोटो सामने आया था उसमें कन्हैया भारत के आपत्तिजनक नक्शे के आगे भाषण देता दिखाई दिया। इन बातों को हवा दी गयी.. ना जाने किसने..लेकिन ऐसा हुआ। .... हो सकता है कन्हैया दोषी नहीं। ...... ये भी हो सकता है कन्हैया ही दोषी हो। ..... लेकिन ये सभी विषय जांच का होगा, जिसके आधार पर ही फैसला कानूनी तौर पर लिया जायेगा।
कभी कभी लगता है, देश में लोगों को आसानी से भडकाया उकसाया जा सकता है। लोग स्वयं में एक कानून बन बैठते हैं लेकिन ये नही सोचते कि कानून क्या है और क्यों है? कानून को भी कार्य करने दिया जाये। हमको कानून से सर्वोच्च नहीं होना चाहिये। कानूनी तौर पर टीवी चैनेलों को भी भडकाऊ तरह से अपने शोज नहीं चलाने चाहिये। बल्कि जरूरत ये है कि पहले सत्यापित हो जाये कि तथ्य में सचमुच वास्विकता है तब ही उसके संदेश को जनता तक पहुँचाया जाना जरूरी है। पत्रकारिता का लक्ष्य सच्चाई की तह तक जाना होता है बल्कि यह नहीं की सच्चाई का कुबूलनामा करवाना। टीआरपी की चाह में आजकल टीवी चैनल्स जल्दी जल्दी खबरें चलते है.... ताकि लोगों तक वे पहुंच सकें। लेकिन यहाँ विषय यही है कि मिडिया की भूमिका कहीं धूमिल तो नहीं होने लगी है।
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Pics Credit: NDTV
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