"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

फ्री फ्री जियो और बाकी टेलिकॉम तो गियो

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रिलायंस के मुकेश अंबानी ने फ्री सर्विसेज का एक ऐसा दांव खेला है कि आज उससे अलग सभी टेलिकॉम ने जियो से नाता तोड़ लेने का ही फैसला कर लिया। बाकी टेलिकॉम (एयरटेल, वोडा, आईडिया) चाहते है कि जियो की इनकमिंग कॉल्स को अपने नंबर पर आने से पहले ही ब्लॉक कर दिया जाये। सही है जनाब एक तरफ तो  आप लोगो को फ्री के लिए आमंत्रित कर रहे है तो लोग दूसरे टेलिकॉम की तरफ क्यों जायेंगे, फिर तो दूसरों को फैसले लेने ही पड़ेंगे।


अब रही बात जियो की, मेरा मानना है कि वैसे तो जियो सर्विसेज से मोदी जी के डिजिटल इंडिया के मिशन में मदद मिलेगी। शायद अच्छा निर्णय हो सकता है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के फ्रंट पेज पर जियो के साथ मोदी जी की फोटो दिखाए जाने से भी लोगों द्वारा आवाज़ उठाई गयी थी। कि कोई किसी राष्ट्र का प्रमुख मंत्री सीधी तौर पर किसी गैर सरकारी चीजों/सर्विसेज को कैसे सपोर्ट कर सकता है। ट्विटर, फेसबुक और बहुत सी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर खूब आलोचना देखी गयीं।

जियो की फ्री सर्विसेस लांच होते ही चारों तरफ खुशियां देखी गयीं। दुनिया को मुट्ठी में करने की चाहत लिए युवाओं से लेकर बड़े बुजुर्ग सभी जियो सिम लेने के लिए रिलायंस स्टोर की तरफ भागते मिले।  लेकिन देखा जाये तो रिलायंस स्टोर के बाहर लगी भीड़ में मुझे लगता नहीं कि कोई गरीब या कोई किसान सिम लेने के लिए संघर्ष कर रहा हो। बहुत से लोग लेटेस्ट आई-फ़ोन, नेक्सस, सैमसंग एस-7 जैसे मोबाइल लिए भी दिखाई देते हैं। जो लोग अपने आप में सुख-सुविधा के साथ सामर्थ्य दिखा सकते हैं, उनको भी भीड़ बढ़ानी होती है। असल में वे लोग पहले गरीब बन जाते हैं। जैसा कि रिलायंस जियो की फ्री ट्रायल स्कीम दिसम्बर 2016 तक ही है मगर उसके बाद भी काफी अच्छे प्लान्स है।
(रिलायंस जियो के प्लान्स)
एक समय ऐसा भी मुझे याद है जब बीएसनल ने जब अपने लैंडलाइन फ़ोन्स से भारत को जोड़ने का प्रयास किया था। कुल मिलकर उस समय को संचार क्रांति की शुरुआत के तौर पर हम समझ सकते हैं। आस पड़ोस के लोग एक ही फ़ोन से चिपके से दिखाई देते थे। आज इंटरनेट क्रांति का दौर चला है, जिसकी तर्ज पर रिलायंस ने  जियो सर्विसेज लांच कर इतना सस्ता इन्टरनेट पेश किया। 
बीएसएनएल की सरकारी परेशानियों को समझा जाये तो मैं समझता हूँ, कि सच में बीएसएनएल कभी भी ऐसे प्रगति नहीं कर सकता, क्योंकि बार-बार सुनने, पढ़ने को मिलता है कि कई सरकारी दफ्तरों, मंत्रियों और अधिकारियों के यहाँ टेलीफ़ोन बिल बकाया है। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में यदि इस तरह से हो काम चलता रहे तो साफ़ तौर पर हम कह सकते हैं कि आरामतलबी और भ्रष्टाचार ने सरकार और सरकारी तंत्र को बिलकुल हाशिये पर ला के खड़ा कर दिया है।

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